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पञ्चतन्त्र
दुगुना शरीर दें तो यह शंकुकर्ण दूने शरीर के बदले में धर्म को साक्षी देकर अपना शरीर देने को तैयार है।" सिंह ने कहा , “अगर यह बात है तो इस व्यवहार में धर्म को साक्षी करो।" जैसे ही सिंह ने यह कहा उसी समय भेड़िये और सियार ने उसकी दोनों कोखें चीर डाली और इस तरह शंकुकर्ण की मृत्यु हो गई। ___ बाद में वजूदंष्ट्र ने चतुरक से कहा, "हे चतुरक! मैं जब तक नदी के ऊपर स्नान और देवपूजा कर आऊं तब तक तुम यहां सावधानहोकर रहना।" यह कहकर वह नदी पर चला गया। उसके जाने पर चतुरक सोचने लगा, 'किस तरह मैं अकेले ही इस ऊंट को खाऊं?'ऐसा सोचकर उसने क्रव्यमुख से कहा, "अरे ऋव्यमुख ! तू भूखा है। जब तक कि स्वामी न आयें तब तक तू इस ऊंट के मांस को खा, मैं स्वामी के सामने तुझे निर्दोष साबित कर दूंगा। यह सुनकर क्रव्यमुख ने थोड़ा सा ही मांस खाया था कि चतुरक ने कहा, "अरे क्रव्यमुख,स्वामी आते हैं, इसलिए इस ऊंट को छोड़कर दूर भाग,जिससे उसके खाए जाने की जांच पड़ताल वे न करें।" उसके ऐसा करने के बाद सिंह ने आकर देखा तो उस ऊंट का कलेजा गायब था। इस पर भौहें चढ़ा कर वह कठोरता से बोला, "अरे, इस ऊंट को किसने जूठा किया है, मुझ से कह जिससे मैं उसको खत्म कर दूं।" ऐसा कहने पर क्रव्यमुख चतुरक के मुख की ओर देखने लगा और कहा, “तू कुछ जवाब दे जिससे मुझे शांति मिले।" इस पर चतुरक हंसकर कहने लगा, “अरे, मेरा अनादर करके मांस खाने के बाद अब तू मेरा मुंह देखता है ? तू अपने अविनय रूपी वृक्ष का फल चख।" यह सुनकर अपने मरने के भय से क्रव्यमुख दूर देश को भाग गया।
___ उसी समय उस रास्ते बोझ से थका हुआ ऊंटों का एक काफिला आया। उसमें सबसे आगे चलते हुए ऊंट के गले में एक बड़ा घंटा बंधा हुआ था। दूर से इस घंटे की टनटनाहट सुनकर सिंह सियार से कहने लगा, "भद्र ! पता तो लगा, पहले कभी न सुना गया यह भयंकर शब्द किसका है ?" यह सुनकर चतुरक वन में थोड़ी दूर जाकर लौट आया और कहने लगा, "स्वामी, अगर आप भाग सकिये तो फौरन भाग जाइये ।" सिंह ने कहा,