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५. सभ्यक व मिथ्या ज्ञान
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१०. वस्तु पढने का उपाय
विचारना तो यह है कि इन पर्यायों का पृथक पृथक प्रतिपादन क्या इन खडित पर्यायो को दर्शाने के लिये कर रहा हूँ। या अखडित वस्तु का परिचय दिलाने के लिये ? मेरा यह प्रयास तो अखडित वस्तु को दर्शाने के लिये है । पर यदि आप उन-उन एक-एक पृथकपृथक पर्यायों को तो समझे पर उनको परस्पर मे यथा स्थान जड़ कर अपने ज्ञान मे उन सब का एक अद्वैत या खंडित चित्रण न बना सके, तो क्या आप इनको ३० पृथक-पृथक पदार्थ ही न समझ बैठेगे। ऐसा ही होगा और ऐसा ही हो रहा है ।
कथन क्रम मे तो पहिले नं. १ फिर नं. २, फिर नं. ३ और इसी प्रकार नम्बर वार ३० की व्याख्या की जायेगी, अर्थात् कथन क्रम मे इस वस्तु का चित्रण निम्न प्रकार का हो जायगा।
चित्र न २
२/ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९/१०/११/१२/१३,१४१५/१६)
१७/१८/१६/२०/२१/२२२३,२४/२५२६/२७/२८२६३०
और इसलिये जब आप नं. ८ की बाते सुनते हुए होगे तो पहिले सुनी हुई नं. एक की बात भुला चुके होगे, और जब न. १७ की बात सुनते होगे तो न. ८ की बात को भुला चुके होगे। इस प्रकार सुनने से तो पदार्थ का चित्र बनाया जाना सभव नही है, क्योकि इस प्रकार तो सर्व अग पृथक -पृथक भी आपके हृदय कोष मे प्रवेश न पा सकेगे, यदि यह ३० के ३० आपके स्मृति पट पर उतरते भी चले जाये तो भी यह वहां मात्र पृथक-पृथक स्वतत्र वस्तुओ का रूप धारण करके चित्रित होने का प्रयन्न करने लगेगे ।
___ अर्थात् न १ का नाता न. ८ से कुछ न हो सकेगा और न. ८ का न १७ से कुछ न हो सकेगा और यदि ऐसा भी हो पाया तो क्या