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५. सम्यक् व मिथ्या ज्ञान
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इस प्रकार सर्व विषयों के विज्ञाता सर्वत्र देव को छोड़कर हर व्यक्ति किसी अपेक्षा से सम्यग्ज्ञानी है और किसी विषय की अपेक्षा मिथ्याज्ञानी । जैसे कि डाक्टरी विज्ञान की अपेक्षा डाक्टर लोग, मशीन विज्ञान की अपेक्षा एन्जियर लोग, अणु विज्ञान की अपेक्षा अमेरिका व रूस के वैज्ञानिक विशेष ही सम्यग्ज्ञानी कहे जा सकते है, वीतरागी गुरु नही । और आत्मविज्ञान की अपेक्षा वीतरागी गुरु वा अन्य अल्प भूमिका मे स्थित कोई भी अनुभवी व्यक्ति ही सम्यग्ज्ञानी कहा जा सकता है, ऊपरवाले डाक्टर आदि नही, क्योंकि वे उस विषय को जानते नही । इसी प्रकार सर्वत्र लागू करना । अब बताओ कि मेरी वात व आपकी बात मे विरोध कहा रहा ? उस उसविषय का इन्द्रिय प्रत्यक्ष करके उस उस विपय सबंधी यथार्थ प्रतिबिम्ब को ज्ञान में लेने पर क्या उस उस विषय संबंधी संशय विपर्य्यय व अनध्यव साय रहना सभव है ? क्या वह वह विषय उसके ज्ञान मे अत्यन्त स्पष्ट नही हो जाता ? क्या उस उस विषय का प्रत्यक्ष करने के लिये आत्मा का प्रत्यक्ष करना भी आवश्यक है, और यदि नही तो क्यो वह उस उस विषय सबधी सम्यग्ज्ञानी न कहलायेगा उसमे उस विषय संबंधी सम्यग्ज्ञान का लक्षण ( संशय विपर्यय अनध्यवास रहितता ) घटित होती है ? परन्तु जब तक आत्मा सबंधी प्रत्यक्ष नही हो जाता या आत्मा संबंधी परोक्ष अखड चित्रण का भाव क्यो कि उसके हृदय पट पर अकित नही हो जाता, तब तक भले सर्व लौकिक विषयो का साक्षात कर पाया हो तथा सर्व आगम को धारणा व स्मृति में वैठा लिया हो, वह आत्मा विज्ञान की अपेक्षा तो मिथ्या ज्ञानी ही रहेगा, क्योकि आत्म विज्ञान के सबध मे मिथ्या ज्ञान के लक्षण, सशयादि का सद्भाव वहा घटित होता है ।
सम्यग्ज्ञान व मिथ्याज्ञान को और अधिक स्पष्ट करने के लिये पुन. और दृष्टान्त देता हूँ । देखो आज तो अणु का युग चल रहा है। रूस व अमेरिका अणु विज्ञान मे वरावर प्रगति करते जा रहे है । पर भारतवर्ष आज तक उस विषय को स्पष्ट स्पर्श करने में असफल रहा है । क्या उसने अणु सम्बन्धी
५. प्रत्यक्ष गान में सम्यक व मिथ्यापना
सम्यग्ज्ञान
में अनुभव का स्थान