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________________ २२. निक्षेप ७७० ह. निक्षेपो का नयो में अन्तर्भाव नाम निक्षेप के शब्द व्यवहार का आश्रय लेकर यदि विचारा जाये तो पर्यायार्थिक ऋजुसूत्र में भी इसका अन्तर्भाव करने में कोई विरोध नहीं है। भले ही शब्द बोलते समय सामने उस की वाच्य भूत पर्याय न हो पर शब्द पर से उसका ज्ञान मे ग्रहण हो अवश्य जाता है । या यो कह लीजिये की चिरस्थायी व्यञ्जन पर्यायो को वाच्य बनाने की अपेक्षा यह पर्यायार्थिक नय मे गर्भित किया जा सकता है। इस प्रकार नाम निक्षेप का द्रव्यार्थिक व पर्यार्थिक दोनो नयो मे कथाञ्चित अन्तर्भाव हो जाता है । २. स्थापना निक्षेप स्थापना निक्षेप का केवल द्रव्यार्थिक (नगम, सग्रह व व्यवहार) मे ही अन्तर्भाव होता है पर्यायार्थिक मे नही । कारण कि यहां तदाकार व अतदाकार स्वरूप से द्रव्य का ही ग्रहण होता है । पर्याय मे द्रव्य की स्थापना नहीं की जा सकती। दूसरे जिस की स्थापना की जाये उस द्रव्य की, जिस मे स्थापना की जाये उस द्रव्य के साथ एकता का भाव ग्रहण हुए बिना स्थापना अपने प्रयोजन की सिद्धि नही कर सकती। दो भिन्न पदार्थों में 'यह वही है' इस प्रकार कथञ्चित एकता करने के कारण यह व्यवहार नय रूप ही है ऋजुसूत्र नय रूप नही । अतः इसे द्रव्यार्थिक नय का विषय ही समझना चाहिये । ३. द्रब्य निक्षेप द्रव्य निक्षेप तो स्पष्' रूप से द्रव्यर्थिक है ही, क्योकि बिना त्रिकाली द्रव्य को ग्रहण किये भूत वर्तमान व भविष्यत की पर्यायो मे एकता का आरोप नही किया जा सकता। दूसरे जीव तथा शरीर इन दो पदार्थों की अथवा अन्य कर्म व नो कर्मादिको की एकता का -
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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