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२२. निक्षेप
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. १. ध. 1 पु. १ | श्ल १२/पृ. १७
६. निक्षेपों का नयों मे श्रन्तर्भाव
"ज्ञान प्रमाणमित्याह रूपायो न्यास इत्युच्यते । नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽयं परिग्रहः | ११ | "
अर्थः- अभेद ज्ञान को प्रमाण कहते है । नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने को न्यास या निक्षेप कहते है । और ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं । इस प्रकार युक्ति से अर्थात प्रमाण नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का ग्रहण अथवा निर्णय करना चाहिये ।
( ति.प. 1१1८३ ) ( व्य . पु ३ | श्ल. १५.१८ )
"वस्तु प्रमाणविषयं
२. वृ न च ११७२ यविषयोभवति वस्त्वेकाशः | यो द्वाभ्या निर्णीतार्थं मनिक्षेपे भवेद्विषय. ११७२।”
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अर्थ -- अखण्ड वस्तु प्रमाण का विषय है। नय का विषय वस्तु का एक अश है । जो इन दोनो नय व प्रमाण द्वारा निर्णीत पदार्थ है वही निक्षेप का विषय है ।
३प.।ध।पू०।७३६-७४० " ननु निक्षेपो न नयो न च प्रमाण न
चाशक तस्य । पृथगुद्देश्यत्वादपि पृथगिव लक्ष्यं स्वलक्षणादिति चेत् । ७३९। सत्य गुणसापेक्षो सविपक्ष. स च नय. स्वयक्षिपति । य इह गुणाक्षेपः स्यादुपचरित. केवल स निक्षेप । ७४० ।”
अर्थ - का कार कहता है कि निक्षेप न तो नय है तथा न प्रमाण है तथा न प्रमाण या उसका अश है, परन्तु निक्षेप का पृथक् उद्देश होने से अपने लक्षण से वह पृथक ही लक्षित होता है । ७३९|
इस के उत्तर मे कहते है कि ठीक है, परन्तु गुणो की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाले तथा विपक्ष की अपेक्षा रखने वाले जो नय है, उन