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५. सम्यक मिथ्या ज्ञान
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३ सम्यक व मिथ्या ज्ञान के लक्षण
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सद्भाव कह रहे है, पर वास्तव मे वहां वह है ही नहीं, वहां तो केवल कुछ धब्बे मात्र है-बस यही आपका विपर्यय भाव होगा। इससे सिद्ध हुआ कि अवश्यमेव अखडित चित्रण की अनुपस्थिति मे ज्ञान में तीनों बाते होती है।
एक दूसरे दृष्टात पर से भी इस बात को पुष्ट करता हूँ देखिये
यह महल है। ईट पत्यरों व लकड़ी के दरवाजे आदि ३. सम्यक व अनेकों अंगों को जोड़कर बनाया गया है । जब इसको मिथ्या ज्ञान बनाने के लिये ईट पत्थरो व इन दरवाजों आदि का ढेर के लक्षण, बाहर लगा हुआ था, तब उन ईट पत्थरो मे यह महल
था या नही ? कहना होगा कि था भी और नही भी। क्योकि उस व्यक्ति को तो वह स्पष्ट दिखाई देता था जिसके हृदय मे कि इस महल का नक्शा मौजूद था, पर उस व्यक्ति को वह प्रतीति में नही आता था जिसके हृदय में इसका नकशा नहीं था इसलिये अखडित चित्रण रूप नकशा हृदय पट मे रहने पर यह कहा जाना कि इन ई टों मे महल छिपा है--यह बात सम्यक् व स्पष्ट है, संशयः विपर्याय अनध्यवसाय रहित है । पर अखडित चित्रण से शून्य हृदय के लिये--- यह कहना कि इसमे महल छिपा है, केवल शब्द मात्र है, सुनी सुनाई बात है, प्रलापमात्र है, वाक् गौरव के अतिरिक्त कुछ नही क्योकि वहा यह बात बिल्कुल अधकार मे पड़ी है, अस्पष्ट है, सशयादि सहित है, निसार व अकार्यकारी है । क्योकि ऐसा व्यक्ति उनके रहते हुए भी महल का उपभोग नहीं कर सकता, उसे बरसात मे भीगना ही पडेगा, और दजि आदि भी धीरे धीरे बरसात धूप आदि के द्वारा गलकर बेकार हो जायेगे।
। इसी प्रकार आगम के अन्दर पडे शब्दों का ढेर अध्यात्म विज्ञान
रूप महल के अंग अवश्य है, परन्तु केवल उसके लिये, जिसके हृदय पट पर कि विज्ञान का अखडित चित्रण विद्यमान है । इससे शून्य हृदय के