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________________ २२. निक्षेः ७६० ६. द्रव्य निक्षेप भक्त प्रत्याख्यान -जिस सन्यास मे अपने और दूसरे (दोनो) के द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है उसे भक्त प्रत्याख्यान सन्यास कहते है ।” (स मि ।११५४६) रा. वा.।१।५।७।२६) (गो क.।मू ५६-६१) ५. भव्य नो आगम द्रव्य निक्षेप१ धापू १।पृ २६१६ 'जो जीव भविष्यत काल में मंगल शास्त्र का जानने वाला होगा अथवा मगल पर्याय से परिणत होगा उसे (अर्थात उसके वर्तमान शरीर को मगल कहना या ज्ञाता कहना) भव्य नो आगम द्रव्य निक्षेप कहते है।" (स सि । १।५।५०) (रा. वा ।१।५।७।२६) (गो. क,।म.।६२) ६. तद्वयतिरिक्त नो आगम द्रव्य निक्षेप-- १ धपु। १। पृ. २६।२५ "कर्म तद्वयतिरिक्त द्रव्य मगल और नो कर्म तद्वयतिरिक्त द्रव्य मंगल के भेद से तद्वयतिरिक्त नो आगम द्रव्य मगल दो प्रकार का है । कर्म तद्वयतिरिक्त--उनमे जीव के प्रदेशों से बन्धे हुए तीर्थ कर नाम कर्म को कर्म तद्वयतिरिक्त नो आगम द्रव्य मंगल कहते हैं, क्योंकि बह भी मगल पने का सहकारी कारण है। नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य मगल दो प्रकार का है-एक लौकिक और दूसरा लोकोत्तर । ___उन दोनो मे से लौकिक मंगल सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार का है। इन मे श्वेत सरसो, जल से भरा हुआ कलश, वन्दनमाला, छत्र, श्वेतवर्ण, और दर्पण आदि अचित्त द्रव्य मगल है । और वाल कन्या तथा उत्तम जाति का घोड़ा आदि सचित्त मगल है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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