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२२ निक्षेप
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६ द्रव्य निक्षेप
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आहार को धीरे धीरे कम करते हुए शरीर को कृश करके, वीतराग भाव से शरीर के त्याग ने को समाधि कहते हैं । आहार कम करने की अपेक्षा तीनो ही समाधियो मे कोई अन्तर नहीं है । अन्तर केवल बाह्य सेवा व वैयावृत्ति मे है। मृत्यु आने से पहिले समाधि गत उस शरीर की स्वयं भी सेवा कर लेता है और दूसरे से भी करा लेता है, वह भक्त प्रत्याख्यान समाधि है । दूसरे से सेवा नहीं कराता पर स्वयं कर लेता है व इंगिनी समाधि है । न दूसरे से सेवा कराता है और न स्वयं ही करता है । काष्ठ वत् एक कर्वट पर पड रहता है, और इसी अवस्था मे शरीर को त्याग देता है, वह प्रायोपगमन समाधि है । इन तीनो मे से प्रथम जो भक्त प्रत्याख्यान समाधि है, वह तीन प्रकार है-उत्तम, मध्यम व जघन्य । १२ वर्ष तक धीरे धीरे आहार कम करते रहकर शरीर को छोड़ना उत्तम है। अन्तिम समय आ जाने पर केवल अन्तर्मुहूर्त मात्र के लिये आहार छोडकर शरीर का त्याग करना जघन्य है। और मध्य गत हीनाधिक काल पर्यन्त यथा शक्ति आहार कम करते हुए शरीर को छोड़ना माध्यम है। उस उस प्रकार से छोडे गए शरीर को 'ज्ञाता' कहना उस उस नाम वाला भूत ज्ञायक शरीर नो आगम द्रव्य निक्षेप है।
जैसा कि पहिले बताया गया है, शरीर के अतिरिक्त भी कुछ जड़ पदार्थ लोक मे है, जो न जीव है और न जीव के शरीर, इन से अतिरिक्त ही कुछ है, इसलिये वे तद्वयतिरिक्त कहलाते है। इसमे दो जाति के पदार्थ गर्भित है-कर्म व नो कर्म । ज्ञानावरणादि कर्मो का नाम 'कर्म' है और सर्व दृष्ट जड़ पदार्थ 'नो-कर्म' है ।
कर्मो को ज्ञाता कहना कर्म तद्वयातिरिक्त नो आगम द्रव्य निक्षेप है और नो कर्मो को अर्थात धन मकान आदि को ज्ञाता कहना नो कर्म तद्वयातिरिक्त नो-आगम द्रव्य निक्षेप है । नो कर्म भी दो प्रकार का होता है-लौकिक व लोकोत्तर । रागादि के पोषक पदार्थ लौकिक