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२. निक्षेप सामान्य
२ नय चक्र गद्य । पृ. ४८ " वस्तु नामादिषु क्षिपतीति निक्षेपः । "
अर्थ :--वस्तु का नामादिकों में क्षेपण करे सो निक्षेप है ।
३ घ. पू. १। श्ल २ | पृ.१० " जो किसी एक निश्चय या निर्णय मे क्षेपण करे, अर्थात अनिर्णीत वस्तु का उसके नामादिक द्वारा निर्णय करावे, उसे निक्षेप कहते हे ।"
( ध । पु१३ पृ. ३।१५).
२२. निक्षेप
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६. १७ "नामादिके द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को निक्षेप कहते हैं ।"
( धापू ३।१७ )
५ ध।पु.१।श्ल१२।पृ १७ "ज्ञानं प्रमाण इत्याहुरूपायो न्यासित्युच्यते । यो ज्ञातुरभिप्राय युक्तितोऽयं परिग्रहः ||११| "
अर्थः- सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते है, नामादिके द्वारा वस्तु मे भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहते है, और ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं । इस प्रकार युक्ति से अर्थात प्रमाण नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का ग्रहण अथवा निर्णय करना चाहिये ।
( ति प . 1१1८३ ) ( ध . | पु . ३ । गा. १५ पृ १८ )
६. ध. । पू. ४। २ " संशय विपर्यय व अनव्यवसाय मे अवस्थित वस्तु को उनसे निकाल कर जो निश्चय में क्षेपण करता है, उसे निक्षेप कहते है । अथवा बाहरी पदार्थ के विकल्प को निक्षेप कहते है । अथवा अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का प्ररूपण करने वाला निक्षेप है ।
( ध | पु. १३ पृ. १९८ ) ( ध . पु 1. पू. १४०।१३ )