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२१. अन्य अनेको नय
२ सर्व नयो कामूल
नयो मे अन्तर्भाव है कि यहां द्रव्य नय से तात्पर्य 'आगम पद्धति का शुध्द द्रव्यार्थिक व संग्रह नय' तथा अध्यात्म पद्धति का 'शुद्ध निश्चय' नय है, वयोकि द्रव्य को त्रिकाली पारिणामिक भाव स्वभावी दर्शाया जा रहा है ।
२. पर्याय नय -
"आत्मा पर्याप नय से वस्त्र के पृथक् पृथक् तन्तुओ वत् दर्शन ज्ञान चरित्र रूप है" इस लक्षण पर से नि.सशय यह पता चलता है कि यहा पर्याय नय का लक्ष्य आगम पद्धति की 'अशध्द द्रव्यार्थिक या ब्यवहार' नय केप्रति और अध्यात्म पद्धति के 'सदभूत व्यवहार' नय के प्रति है। क्योकि यहा गुण गुणी भेद का ग्रहण है।
३ अस्तित्व नय --
"आत्मद्रव्य अस्तित्व नय से स्व द्रव्य क्षेत्र काल भाव से अस्तित्व वाला है । जिस प्रकार कि लोह द्रव्यमई वाण स्वक्षेत्र से कमान के बीच मे रखा गया तथा स्वकाल से धनुष पर खेचा गया तथा स्व-भाव से लक्ष्योन्मुख है ।" स्व चतुष्टय से अद्वैतता दर्शाने के कारण आगम पद्धति के 'स्व चतुष्ट ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक व संग्रह नय में' तथा अध्यात्म पद्धति के 'निश्चय नय' मे इस लक्षण का अन्तर्भाव होता
४. नास्तित्व नय
"आत्मद्रब्य नास्तित्व नय से पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव से नास्तित्व वाला है । जिस प्रकार पहिले वाला तीर अन्य तीर के द्रव्य की अपेक्षा से लोहमई नही है अर्थात उस लोहे का नही है जिस लोहे का कि अन्य तीर है, अन्य तीर के क्षेत्र की अपेक्षा से डोरी और कमान के बीच मे रखा हुआ नही है अर्थात जिस कमान के बीच मे अन्य तीर रखा है उसी कमान मे यह नही रखा है, अन्य