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२१. अन्य अनेका नय
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१. नयो के असख्याते
भेद
१. सामान्य से शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा नय एक भेद है। एल. वा. ।१।३६।२ “सामान्यादेशतस्तावदेक एव नयः स्थित ।
स्याद्वादप्रविभक्त्तार्थ विशेष व्यञ्जनात्मकः ।। अर्थ--सामान्य प्ररूपणा की अपेक्षा नय एक ही है।
२. सामान्य और विशेष की अपेक्षा द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये नय के दो भेद है । सामान्य और विशेष को छोड़ कर नय का कोई दूसरा विषय नहीं होता। अतः सम्पूर्ण नैगमादिनयों का इन्ही दो नयो मे अन्तर्भाव हो जाता है ।
श्ल वा ।१।३३।३ "संक्षेपाद् दौ विशेषेण द्रव्यपर्याय गोचरौ ।" अर्थः-संक्षेप से नयों के दो भेद है-द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक । सन्मति तर्क ।१।३ "परस्पर विभक्त्त सामान्य विशेष विपयत्वात् की अभयदेव सूरि द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकावेव नयौं, कृत टीका न च तृतीय प्रकारान्तरमस्ति यद्विषयो
ऽन्यस्ताभ्यां व्यक्तिरिक्तो नयः स्यात् ।” अर्थ --परस्पर भेद करके सामान्य और विशेष को विपय करने
के कारण द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक यह दो ही नय होते है। तीसरा कोई भी ऐसा प्रकार नहीं है, जो कि उन
दो के अतिरिक्त अन्य किसी नय का विषय बन सके । ३. संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र इन तीन अर्थनयो मे एक शब्द नय को मिला कर नय के चार भेद होते है।
समवायाग टीका "नैगमनयो द्विविधः सामान्यग्राही विशेष ग्राही च । तत्र यः सामान्यग्राही स संग्रहेऽन्तर्भूतः विशेष ग्राही तु व्यवहारे । तदेवं संग्रहव्यवहार ऋजुसूत्र शब्दादित्रयं चैक इति चत्वारो नयः ।"