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४. प्रमाण व नय
५३ २. अखंडित व खंडित ज्ञान का अर्थ
लम्बा चित्रित धागा आपके सामने लाऊं और आपसे पूछू कि इस धागे पर आपको क्या दिखाई देता है तो क्या कहेगे ? केवल कुछ कुछ अन्तराल पर पड़े स्याही के काले दाग, और कुछ भी नहीं। मैं कहता हूँ इस पर चन्द्रमा का चित्र खिचा है पर क्या आप देख सकेंगे ? देख तो सकेगे पर धागे की इस हालत मे नही । यदि पुनः आप इस धागे को उतने ही बड़े किसी गत्ते पर पूर्ववत् सटा सटा कर लपेट दे, तो क्या ये धागे पर के काले काले दाग एक दूसरे के निकट सम्पर्क मे यथा स्थान आकर चन्द्रमा का चित्र न बन बैठेगे ? अवश्य बन बैठेगे। यदि आप लपेटे तो भी और एक बालक लपेटे तो भी। परन्तु ध्यान रहे कि गत्ते का वह टुकड़ा जिस पर कि आप इसे लपेटने बैठे हे बिलकुल उतना ही बड़ा व उतना ही मोटा हो जितना कि पहिला था। यदि एक बाल का फर्क रह जायेगा तो ये काले दाग यथास्थान एक दूसरे की निकटता को प्राप्त न हो सकेगे, बल्कि कुछ कुछ सटक जायेगे, और धागे के इस ताने पर कुछ बिखरी हुई काली काली बून्दे सी ही दीख पावेगी, चन्द्रमा नही। यदि धागे का ठीकबठीक ताना उपरोक्त प्रकार तन पाये तो उस पर प्रगट होने वाला वह चन्द्रमा का चित्र बिल्कुल वैसा ही होगा या उनसे कुछ भिन्न रूप का! उतना ही बड़ा होगा या छोटा बड़ा ? स्पष्ट है कि वैसा ही व उतना ही बड़ा होगा । और इस प्रकार एक अखति चित्र को धारा का रूप देकर उसे पुनः अखडित चित्र बना दिया गया ।
उपरोक्त प्रकरण मे दो बाते प्रमुख है , जिनके सबध मे विचार करना है-एक है धागे पर का चित्रण जिसे मैं आगे आगे 'धारारूप चित्रण' इस शब्द द्वारा कहूगा, दूसरा है धागे का ताना करने के पश्चात् प्रगटा चित्रण जिसे मै 'अखडित चित्रण' इस शब्द से कहूगा । धारारूप चित्रण मे देखने पर आगे पीछे पड़े काले धब्बो के अतिरिक्त कुछ दिखाई नही देता । अखडित चित्रण मे वही काले धब्बे एक चित्र का सुन्दर रूप धारण कर लेते है। काले धब्बो को देखने पर आप कुछ