________________
२० विशुद अध्यात्म नय
६६४
१. विशुध्द अध्यात्म
परिचय
को हम शक्ति कह सकते है, पर शक्ति को गुण नही क्योकि गण प्रतिक्षण कोई न कोई कार्य करता ही रहता है, परन्तु शक्ति वस्तु में पडी रहती है, यदि अनुकूल सामग्री मिली तो वह अपना असर दिखा दतो है, नही तो पड़ी रहती है। उदाहरणार्थ ईन्धन मे उसका भूरा आदि रग व उसकी कठोरता आदि स्पर्श तो गुण है, क्योकि इनका कोई न कोई कार्य अर्थात पर्याय हर समय उसमे देखने को मिलती है, और अग्नि के द्वारा जल जाने की शक्ति है, क्योकि उसका काम हर समय दिखाई नहीं देता । अग्नि का सयोग मिला तो जल गया, नहीं मिला तो नही जला । न जलने वाली हालत मे क्या उसकी शक्ति कही । चली गई ? नही उसमे ही है । इसी प्रकार जीव व पुग्द्रल मे चलाने व फिरने की शक्ति है, पर इसका यह अर्थ नही कि वह हर समय चलते ही रहे । चाहे तो चले और चाहे तो न चले । उन्हें प्रत्येक समय चलना ही पड़े ऐसा नही है । इसी कारण उसे आगम मे क्रियावती नाम की शक्ति कहा गया है, गुण नही।
_____ जीव मे ज्ञान तो गण है क्योंकि हर समय-निगोद या सिद्ध दोनो अवस्थाओ मे यह जानता है । उसका जानने का कार्य एक समय को भी रूकता नहीं । पर क्रोध करने का उसमे गुण नही है शक्ति है, क्योकि चाहे तो क्रोध करे चाहे तो न करे । क्रोध न करते सभय उसकी वह शक्ति कही चली नही जाती, शक्ति होने का यह अर्थ भी नहीं की हर समय उसे क्रोध करना ही पड़े । सिद्ध भगवान मे वह शक्ति केवल शक्ति रूप से पड़ी है भले ही उन्हे कभी क्रोध करने का अवसर प्राप्त न हो, बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार कि ससारी जीव मे भव्यत्व शक्ति 'शक्ति' 'रूप से पड़ी है भले उसे सिद्ध बनने का अवसर भी प्राप्त न हो।
'हा।
इस शक्ति को 'स्वभाव' या 'धर्म' इस नाम से भी कहा जाता . जाता है । 'गुण' को हम शक्ति, स्वभाव या धर्म कुछ भी कह