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५. व्यवहार नपा
१६. व्यवहार नय
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६. सद्भुत व्यवहार
का लक्षण
साल अमबहार
व्यवहार नय
सद्भत
असद्भुत
शुद्ध सद्भूत अशुद्ध सद्भूत अनुपचरित (अनुपचरित सद्भूत) (उपचरित सद्भूत) असद्भूत
उपचरित असद्भूत
जैसा कि इसके नाम पर से ही जाना जा रहा है, सद्भूत व्यव६. सद्भूत ब्यवहार हार नय का लक्षण उन भेदो को विषय करना है
का लक्षण जो कि वस्तु मे सत् रूप से दिखाई दे। अत. वस्तु मे गुण-गुणी व पर्याय-पर्यायी के भेदोपचार द्वारा एक अखण्ड वस्तु मे द्वैत उत्पन्न करके 'यह वस्तु अमुक गुण पर्याय वाली है, या इतने प्रकार की है' ऐसा कहना सद्भूत व्यवहार नय है । 'ज्ञान मात्र ही जीव है' व 'ज्ञान जीव का गुण है अथवा जीव ज्ञानवान है' इन दोनों वाक्यो का भावार्थ एक होते हुए भी उनके शब्दार्थ मे महान अन्तर है । पहिला वाक्य जीव व ज्ञान की तन्मयता का परिचय देने के कारण निश्चय नय का वाच्य है, और दूसरा गुण-गुणी का द्वैत करने के कारण अथवा स्वामी सम्पत्ति या लक्ष्य लक्षण भाव रूप द्वैत करने के कारण सद्भूत व्यवहार नय का वाच्य है । जैसा कि निन्म उदाहरणो पर से प्रगट है ।
१. आ प । १६ । पृ १२६ “गुणगुणिनो सज्ञादि भेदात् भेदकः
सद्भूत व्यवहारः।"
(अर्थः-गुण व गुणी मे नाम भेद द्वारा भेद- डालने वाला
सद्भूत व्यवहार है । अर्थात वास्तव मे तो जो जीव हैं, वही ज्ञान है, पर हम इन दोनो को पृथक-पृथक शब्दों