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१६. व्यवहार नय
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२. उपचार के भेद क
लक्षण
( वृ. न च । २२३ . ) सजाति विजाति के परस्पर सम्मेलन से
यह उपचार यथा योग्य रूप से अनेक विकल्प रूप हो जाता है । उनमे से कुछ विकल्पों का परिचय अगले उद्धरणो मे दिया गया है ।
५. ग्रा. प. । १० पृ । ८४ “स्वजात्युपचरितासद्भूत व्यवहारो, यथा पुत्रदारादि मम् । विजात्युपचरितासद्भूत व्यवहारो, यथावस्त्राभरणहेमरत्नादि मम् । स्वजातिविजात्युप चरिता सद्भूत व्यवहारो, यथा देश राज्य दुर्गादि मम् ।"
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अथ - - स्वजाति पदार्थो मे निमित्ति व प्रयोजन के वश से उपचार करना स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार है जैसे पुत्र, स्त्री मेरे है ऐसा कहना । यहा चेतन पदार्थो मे चेतन के स्वामित्व का आरोप है विजाति पदार्थो में उपचार करना विजाति असद्भूत व्यवहार है जैसे वस्त्रा भूषण स्वर्ण रत्नादि मेरे है ऐसा कहना । यहां अचेतन पदार्थो मे चेतन के स्वामित्व का आरोप है । स्वजाति विजाति असद्भूत व्यवहार नय उसे कहते है जो सजाति-विजाति वाले मिश्र पदार्थों में उपचार करे जैसे देश राज्य व दुर्गादि मेरे है, ऐसा कहना यहा चेतन अचेतन के समूह रूप पदार्थो मे चेतन के स्वामित्व का आरोप है ।
(वृ. न. च. । २४१–४४३.) स्वजाति विजाति के परस्पर सम्मेलन से उपचार यथा योग्य रूप से अनेक विकल्पात्मक हो जाता है । उनमे से कुछ विकल्पो का परिचय इस अगले उद्धरण मे दिया जाता है ।