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जान सम्बन्ध
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५. कुछ शब्दो के लक्षण
को यहा दोहरा देना योग्य है ताकि वह स्मृति से उतरने के लक्ष्ण न पाये। - १. अपनी 'धारणा के अनुकूल ही बात को सुनने व कहने की,
तथा उससे विपरीत अन्य बात को सुनने व कहने का निषेध करने की भावना से निकलने वाली ज्ञान की खेचा
तानी का नाम, एकान्त या पक्षपात है। २. अनेक धर्मात्मक वस्तु के अंगभूत गुणों व पर्यायों के एक
अखंड समुदायरूप वस्तु को, अनेकान्त या अनेकवर्मात्मक
कहते है। ३. अनेकान्त वस्तु के अनुरूप ही अनेक अगों के एक अखंड
ज्ञान के चित्रण को, अनेकान्त ज्ञान कहते है। ४. अनेकान्त के आधार पर वस्तु का विश्लेषण करके उसके
अंगों को पृथक पृथक कथन करने की पद्धति को अनेकान्त
वाद या स्याद्वाद कहते है। ५. दृष्ट वस्तु का साक्षात्कार होने पर जो प्रतिबिम्ब रूप से
ज्ञान मे उस अनेकान्त वस्तु का अखंड ग्रहण होता है, उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते है। वक्ता अपने ज्ञान के आधार पर जो दृष्टातों आदि के द्वारा निरूपण करके, श्रोता के ज्ञान पट पर उस अनेकान्त वस्तु का एक अखंड चित्रण बना पाता है, उसका नाम
परोक्ष ज्ञान है। ७. अनेकान्त वस्तु के पृथक् पृथक् अगों का केवल शाब्दिक
ग्रहण अज्ञान या मिथ्या ज्ञान है (परोक्ष ज्ञान नही) ८. अनेकान्त वस्तु के सर्व अगों का वस्तु के अनुरूप एक अखंड
चित्रण ही ज्ञान नाम पाता है । ___ ९. वस्तु के त्रिकाली अंगों का नाम गुण है ।