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१८ निश्चय नय
१०. अशथ निश्चय
नय का लक्षण व ससार के कारण अशद्ध परिणामो रूप से परिणमन करने की सामर्थ्य वाला होने के कारण प्रभु है । भाव कर्म जो रागादिक भाव उसका करने वाला होने के कारण कर्ता है। इन्द्रियजनित सुख दु.खो को भोगने वाला होने के कारण भोक्ता है । अर्थात् कर्म जनित अशुद्ध परिणामो स्वरूप जीव को वताना अशुद्ध निश्चय
नय का विषय है। ७ प. का. ना । । ६१ । ११३ "अश द्ध निश्चयेन रागादयोऽपि
स्वभावा भण्यते ।"
(अर्थ-अशुद्ध निश्चय नय से रागादि भी जीव के स्वभाव)
८ प. प्र. । टी. । १।६ । १५ "भाव कर्म दहन पुनरश द्ध
__निश्चयेन" अर्थः-भाव कर्मो का दहन अशुद्ध निश्चय नय से है । क्पोकि
अश द्ध निश्चय नय मे ही उसका अस्तित्व स्वीकारा जाता है । जहा अस्तित्व है वहा ही विनाश सम्भव है । शुध्द निश्चय नय में उनका अस्तित्व ही स्वीकारा
नहीं जाता, विनाश किसका होगा । ६. प प्र. टी । ७ । १४ । ६ "अशुद्ध निश्चय नय सम्बन्ध. मति
ज्ञानादि विभाव गुण नरनारकादि विभाव पर्याय सहित (जीवः) ।"
अर्थ -अशद्ध निश्चय का सम्बन्ध' ऐसा है जैसे कि जीव को
मति ज्ञानादि विभाविक गुण पर्याय और नर नारकादि विभाविक व्यन्जान पर्यायो सहित कहना ।