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१७. पर्यायार्थिक नय
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१ पर्यायार्थिक नय
सामान्य का लक्षण
१ लक्षण नं० १ ( पर्याय ही है प्रयोजन जिसका ) :
१ स.सि । १।६।५८ “पर्यायोऽयं प्रयोजनमस्येत्यसौ पर्यायार्थिकः ।”
अर्थ - पर्याय ही है अर्थ या प्रयोजन जिसका सो पर्यायार्थिक है । (नि. सा । ता वृ. 198 ) ( स. सि 1१1३३।५०२ ) ( ग्रा. प. 1१८ पृ १२२)
२. रा. वा १।३३।१|| "पर्यायोऽर्थ प्रयोजनमस्य वाग्विज्ञानव्या वृत्तिवन्धन व्यवहार प्रसिद्धे रीति पर्यायार्थिक ।"
अर्थ - शब्द और ज्ञान इन दोनो के व्यावृति निवन्धन व्यवहार की प्रसिद्धि रूप जिस नय का प्रयोजन पर्याय है वह पर्यायार्थिक नय है ।
३. ध 1915४। १ । “पर्याय एवार्थ प्रयोजनमस्यति पर्यायार्थिकः ।" (ध. 1९।१७०1३)
अर्थ - पर्याय ही है अर्थ या प्रयोजन जिसका सो पर्यायाथिंक है ।
२ लक्षण न ० २ ( गुण गुणी आदि द्वित्व का निरास) -
१. रा वा १।३३।१।६५। ३" पर्याय एवार्थोऽस्य रूपाद्युत्क्षेपणादिलक्षणो न ततोऽन्यद् द्रव्यमिति पर्यायार्थिक ।”
अर्थ:-रूपादि कोई एक गुण ही है लक्षण जिसका, अथवा उत्क्षेपण अवक्षेपण (ऊपर या नीचे फेकना ) आदि क्रिया ही है लक्षण जिसका ऐसी पर्याय या वस्तु का विशेष