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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५१२ १२. उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध दव्यार्थिक नय ये तीन अंग सत् से पृथक कुछ अपनी सत्ता रखते है । यद्यपि लक्षण में कहा गया 'युक्त शब्द ऐसा ही घोषित करता है कि उत्पादादिक तीन पृथक पृथक वस्तुओ को संयोग वाला सत् है, जैसे दण्ड के संयोग वाला दण्डी है, परन्तु वास्तव मे ऐसा नही है । उत्पादादि मई ही सत् है, अर्थात सत् वही हो सकता है, जो नित्य परिणमन शील रहे । परिण मन शीलता ही उत्पाद व्यय अर्थात उत्पत्ति व विनाश है, और परिणमन करने वाले उस द्रव्य का जू का तू बने रहना ही उसका ध्रौव्यत्व है। जो द्रव्य ध्रुव या नित्य है वही अनित्य है । प्रति क्षण बदलने वाली अवस्थाओ को देखे तो वह अनित्य दिखता है, जैसे वालक का वृद्ध हो जाना । बालक अवस्था का विनाश और वृद्ध अवस्था की उत्पत्ति, यही सत् का उत्पाद व व्यय है, सर्वथा नय सत् का उत्पाद व पुराने सत् का सर्वथा विनाश इसका अर्थ नही। परन्तु उन सब अवस्थाओ मे वह रहा तो मनुष्य का मनुष्य ही । वस यही उसका ध्रुवत्व है ।। दृष्टि विशेप के द्वारा उत्पादादि उन तीनो मे से उत्पाद व व्यय को अर्थात अवस्थाओं को लक्ष्य मे न लेकर केवल ध्रुवत्व या सत्ता की नित्यता को भी देखा जा सकता है, जैसे वालक वृद्धादि से निरपेक्ष मनुष्यत्व को हर अवस्था मे जू का तू देखना । और उत्पाद व्यय रूप परिणमन शील अवस्थाओं से विशिष्ट भी उस ध्रुवत्व को देखा जा सकता है, जैसे कि वालक व वृद्धादि अवस्थाओं से जड़ित उस मनुष्यत्व को देखना । इन दोनो में पहिले प्रकार से देखना इस नय का विषय है। या यों कह लीजिये कि उत्पाद व्यय से निरपेक्ष सत्ता की नित्यता को देखना 'उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय' का लक्षण है इस दृष्टि मे मे उत्पाद व्यय गौण है और ध्रौव्यत्व मुख्य । इसका अन्तर्भाव संग्रह नय मे होता है। अव इस लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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