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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य
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६. ग्रशुद्ध द्रव्यार्थिक
नय
परिणामी सहित । . व्यवहार नय का विषय है ।
२. लक्षण नं० २ ( पर संयोग की सार्थकता )
१. वृ० द्र० स।६।२१ 'अशुद्धनिश्चयस्यार्थः कथ्यते—कर्मोपाधिसमुत्पन्नत्वादश ुद्धः, तत्काले तत्पाय. पिण्डवत्तन्मयत्वाच्च निश्चयः, इत्युभयमेलापकेनाश द्धनिश्चयो भण्यते । "
यह सब अशुद्ध द्रव्यार्थिक रूप
अशुद्ध निश्चय का अर्थ यह है, कि कर्मोपाधि से उत्पन्न होने के कारण अशुद्ध कहलाता है और उस समय अग्नि मे तपे हुए लोहे के गोले के समान तन्मय होने के कारण निश्चय कहा जाता है । इस रीति से अशुद्ध और निश्चय इन दोनों के मेलाप से अशुद्ध निश्चय कहा जाता है ।
२ स सा ।६। प० जयचन्द " अन्य सर्व परसयोगी भेद है वे सव, भेद रूप अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय के विपय है ।"
अब इस नय के कारण व प्रयोजन देखिये । द्रव्य मे गुण व पर्याय के भेद कथञ्चित सत् है, और पर पदार्थ के सयोग से उत्पन्न होने वाले अशुद्ध औदयिक भावों के साथ भी किन्ही पर्याय दिशे पो में यह तन्मय देखा जाता है । यही सत्य इस नय की उत्पत्ति का कारण हैं । यदि भेद सर्वथा न हुए होते तो इस नय की भी कोई आवश्यकता न होती । तहां अभेद मे भी भेदों का या औदयिक भाव स्वरूप अश ुद्ध पर्यायों का आश्रय लेने के कारण तो यह अशुद्ध है, और उनका आश्रय लेकर भी उन पर से द्रव्यार्थिक नय के विपयभूत सामान्य अखण्ड तत्व का ही परिचय देने के कारण द्रव्यार्थिक है । अतः 'अश ुद्ध द्रव्यार्थिक' ऐसा इसका नाम सार्थक है । यह इस नय का कारण है |