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कहना ज्ञान नय है । प्रमाणभूत पदार्थ के सामान्य व विशेष अगों को आश्रय करके कुछ कहना अर्थ नय है । तथा विवेचन क्रम में प्रयुक्त शब्दों व वाक्यों में व्याकरण की अपेक्षा दूषणो देखकर उन्हें दूर करना और ठीक ठीक शब्दों आदि का ही प्रयोग करने को कहना शब्द नय है । इन तीनों नयो का विस्तृत विवेचन पूर्वार्ध भाग में शास्त्रीय नय सप्तक के अन्तर्गत किया जा चुका है । अब इस उत्तरार्ध भाग में नयो के अन्य अनेकों भेद प्रभेदो का क्रम से कथन किया जायेगा | अनेको दृष्टियों से किये गये नय के भेद प्रभेदो का एक चार्ट उसी पूर्वार्ध भाग के अधिकार नं. ९ मे दिया गया था ।
दो प्रमुख पद्धतियों से वस्तु का विवेचन किया जाता है - आगम पद्धति से व अध्यात्म पद्धति से । अज्ञान निवृत्ति के अर्थ किसी भी वस्तु का परिचय पाने के लिये जो कथन किया जाता है उसे आगम पद्धति कहते है, और जोवन या आत्म तत्व सम्बन्धित हेयोपादेयता का विवेक कराने के लिये जो कथन किया जाता है उसे अध्यात्म पद्धति कहते है | आगम पद्धति मे भी दो दृष्टिये है - शास्त्रीय दृष्टि और वस्तु को पढने की दृष्टि । इन दोनो मे से शास्त्रीय दृष्टि वाली आगम पद्धति का कथन पहिले किया जा चुका है, अब इस भाग में आगम पद्धति की जो दूसरी वस्तुभूत दृष्टि है उसका तथा अध्यात्म पद्धति का कथन किया जायेगा । तहा नय के भेदों के क्रमानुसार पहिले आगम पद्धति की वस्तुभूत नयो का कथन करना प्राप्त है । इस दृष्टि के अन्तर्गत द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नयों के १६ प्रमुख भेदों का ग्रहण किया गया है, जो कि चार्ट में स्पष्टत . दिखाये जा चुके है । उन्ही का कथन अब क्रम पूर्वक किया जायेगा ।