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१५ शब्दादि तीन नय
१०. एवभत नय का
लक्षण
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करते समय ही इन्द्र 'पुरन्दर' शब्द का वाच्य हो सकता है, पूजा करतं समय या ऐश्वर्य का भोग करते समय नही । उस समय तो वह पुजारी व इन्द्र है । इस प्रकार क्रिया भेद पर से वाचक शब्द का भेद और वाचक शब्द के भेद पर से तत्क्रिया परिणत वाच्य पदार्थ का भेद देखने वाला नय एवभूत नय है ।
इतना ही नही, इस की सूक्ष्मता तो यहा तक कहने को तय्यार
ज्ञान कर रहा हो,
है कि कोई व्यक्ति जिस समय जिस पदार्थ का उस समय उस व्यक्ति विशेष को उस पदार्थ के नाम से ही पुकारना चाहिये, जैसे कि गाय को देखने मे उपयुक्त व्यक्ति उस समय 'गाय' शब्द का वाच्य है, मनुष्य या जीव शब्द का नहीं । कारण कि व्यक्ति तो ज्ञानस्वरूप है और ज्ञान का सज्ञा करण ज्ञेय के विना किया नही जा सकता जेसे 'घट' ग्राही ज्ञान को घट ज्ञान कहना | एवभूत की एकत्व दृष्टि में घट व ज्ञान अथवा ज्ञान व ज्ञान धारी जीव ऐसा द्वैत कहा ? अतः घट 'आदि ज्ञेय ही ज्ञान है, और वह ज्ञान ही वह व्यक्ति है, अत घट रूप ही वह व्यक्ति है । अतः व्यक्ति विशेष को 'घट' या 'गाय' कहना उस समय युक्त है ।
इतना ही नही इस नय का तर्क तो यहा से भी आगे निकल जाता है । वह द्वैत का सर्वथा निरास करने वाला है । अतः उसकी सूक्ष्म दृष्टि मे 'ज्ञान' 'वान' इन दो पदो का सम्मेल करके एक 'ज्ञानवान' शब्द बनाना युक्त नही । अथवा 'आत्म', 'निप्ट' इन दो पदो का समास करके 'आत्मनिष्ट' शब्द बनाना युक्त नही । 'आत्मा' अकेला आत्मा ही है, आत्मा में निष्ठा पाने वाला ऐसे विशेषण विशेष्य भाव की क्या आवश्यकता हे ? अर्थात प्रत्येक शब्द एक ही अर्थ का द्योतक है सयुक्त अर्थ का नहीं । जहा पदो का समास सहन नही किया जा सकता वहां अनेक शब्दों के समूह रूप वाक्य कैसे बोला जा सकता, अर्थात एव भूत नय की दृष्टि मे शब्द ही शब्द हे वाक्य