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१५. शब्दादि तीन नय ३८४ .
१.. व्य ञ्जन नय
सामान्य परिचय पर्यायाथिक क्यो कहा जाता है। इस सम्बन्ध मे कुछ आगम वाक्य उद्धृत करता है।
१ रा वा ।४।४२।१७।२६१।११ "व्यञ्जनपर्यायास्तु शब्द नया'।. .
अर्थ-शब्द या व्यञ्जननय व्यञ्जन पर्याय को विषय . .. करते है । २ ध पु १।पृ १३। आ ७ "मूणिमेणं पज्जवणयस्य उजुसुट्ट
वयणविच्छेदो । तस्स दुसद्दादीया साह-पसाहा सहुम ।
भेया १७" . . . . . . . . . . .:: . अर्थ-ऋजुसूत्र वचन का विच्छेद रूप वर्तमान काल ही पर्याया- .
थिक नय का मूल आधार है, और शब्दादिक नय शाखा. -
उपशाखा रूप उसके उत्तरोत्तर सूक्ष्म भेद है। . . . . . यहा ऐसा तात्पर्य' समझना कि वर्तमान समय वर्ती पर्याय को विषय करना ऋजुसूत्र नय है । इसलिये जब तक पूर्वोत्तर पर्यायों मे अनुगत द्रव्य गत भेदो की मुख्यता रहती है तब तक व्यवहार नय चलता है, और 'जब वर्तमान मात्र काल. कृत भेद प्रारम्भ हो . जाता है तभी से ऋजुसूत्र नय प्रारम्भ होता है। शब्द समंभिरूढ और एवभूत इन तीनो नयों का विषय भी वर्तमान पर्याय मात्र . है, द्रव्य नही।
___ यहा यह शंका की जा सकती है कि शब्द को विषय करने - - वाले नाम निक्षेप को द्रव्याथिक नय मे गर्भित किया गया है, क्योकि . पर्यायाथिक नय मे क्षण क्षयी होने के कारण, शब्द व अर्थ की विशेपता से सकेत करना नही बन सकता । ऐसा होने पर शब्द नयों का शब्द व्यवहार कैसे सम्भव हो सकेगा ? अतः इन नयो को भी द्रव्यार्थिक स्वीकार करना चाहिये । इस शंका का समाघान आगम मे निम्न प्रकार दिया है। - - - - -
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