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१४. ऋजु सूत्र नय
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पर्याये अप्रधान है । पूर्वापर कोटियों का अभाव होने के कारण उत्पत्ति व विनाश को छोडकर अवस्थान पाया नही जाता ।” (ध० । ९ ।ग्रा० ९४ ॥ पृ० २४४)
“ भावार्थ- सन्मति सूत्र मे शुद्ध ऋजुसूत्र को दृष्टिं मे रखकर वात
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की गई है, इसलिये उस की बात इस नय से बाधित नहीं होती ।
सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वह बात ही सत्य है । क्योकि पहिली और - पिछली पर्यायों में समान रूप से प्रतीति में आने वाला द्रव्य है । वही
ध्रुव या स्थाई है । सो उन पर्यायों के क्षणिक उत्पाद व विनाश से रहित रहना असंभव है | अतः क्षणिक उत्पाद व व्यय रूप जो उस का अंश उसे हीं सूक्ष्म दृष्टि से पर्यायाथिक का विषय बनाया जा सकता है।
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५. ऋजु सूत्र नय " सम्बन्धी शकाये
- शंका - व्यवहार नय का विषय भी व्यञ्जन पर्याय है और
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* स्थूल ऋजुसूत्र का भी । फिर दोनो मे क्या अन्तर है जो व्यवहार नय को द्रव्याथिक व ऋजुसूत्र को पर्यायार्थिक कहते हो ?
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उत्तर - व्यञ्जन पर्याये उसी समय व्यवहार नय का विषय बन
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सकती है, जब कि उनमें अनुगत किसी सामान्य द्रव्य मे अनेकों व्यञ्जन पर्याय रूप भेद दर्शाकर, "यह पर्याय इस द्रव्य की है" ऐसा कहा जाये । परन्तु जहा वे पर्याये एकुत्व रूप से ग्रहण की जाती है, तव पर्यायार्थिक का विषय बनती है।
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५ शंका - ( ध०।९।२६५।२२)
"पर्यायार्थिक ऋजु सूत्र
के द्रव्य पने की सम्भावना कैसे हो सकती है ?"
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उत्तरः- "नेही, क्योकि अशुद्ध ऋजु सूत्र नय मे द्रव्य की सम्भावना के प्रति कोई विरोध नही ।""