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जाने पर यह दृष्टि रह नही पाती, अत. उसका लोप होने को अवकाश नही ) |
१४. ऋजु सूत्र नय
५. ऋजु सूत्र नय सम्वन्धी शकायें
वस्तु वास्तव में सामान्य विशेषात्मक है । सामान्य से रहित विशेष या विशेष से रहित सामान्य खर्विसाण वत् असत् है । अतः इन दोनों कोटियों को युगपत स्पर्श करने वाला ज्ञान ही प्रमाण है । परन्तु यहा तो नया प्रकरण है । सामान्य विशेषात्मक अखण्ड वस्तु मे से कोई से एक सामान्य या विशेष अग को पृथक निकालकर देखने वाली दृष्टि का नाम नय है, यह पहिले समझाया जा चुका है । अत. सामान्य रहित विशेष को ग्रहण करना नय स्वरूप होने के कारण अनेकान्तवादियों के यहाँ विरोध को प्राप्त नही होता, क्योंकि यहां सामान्यांश ग्राही द्रव्यार्थिक दृष्टि गौण है परन्तु उसका निषेध नही है । बोद्ध मत वत एकान्त क्षणिक या विशेष वादियों वत यदि हमारा कथन भी सामान्य से सर्वथा व सर्वदा के लिये निरपेक्ष हुआ होता तो अवश्य ही आपकी शंका युक्त थी ।
२. शंका - सामान्य ग्राही द्रव्यार्थिक व विशेष ग्राही पर्यायार्थिक क्या अन्तर है ?
उत्तर - अनेक विशेषो मे अनुस्यूत या अनुगत एक अखण्ड व ध्रुव तत्व को सामान्य कहते है, जैसे बालक, युवा बुढ़ापा तीनों कलात्मक विशेषो मे अनुगत मनुष्य सामान्य तत्व है । अत. सामान्य तत्व में दृष्टि विशेष करने पर भेद भी दिखाई दे सकता है और अभेद भी । इस प्रकार अनेकों विशेषो के द्वैत में अद्वैत करने वाला या एक