________________
३७२
४
१४. ऋजु सूत्र नय
ऋजु सूत्र नय के भेद प्रभेद व लक्षण
३ आ. प ।९। पृ. ७९ “स्थल ऋजुसूत्रो, यथा-मनुप्यादिपर्यायास्तदायु प्रमाणकाल तिष्ठन्ति ।"
मनुष्यादि
अर्थ-स्थूल ऋजुसूत्र नय ऐसा मानता है, जैसे कि पदार्थ स्व स्व आयु काल प्रमाण ही स्थित रहते है । पीछे उनका निरन्वय नाश हो जाता है ।
४. ध. ६२२४/
“असुद्धो उजुसुदणओ सो चक्खुपासियवेजणयञ्जयविसओ । तेसिं कालो जहणेण अंतोमुहुत्तमुक्कस्सेण, छम्मासा सखेज्जा वासाणि वा । कुदो ? चाक्खिदियगेज्झ वेजणपज्जायाणमप्पहाणी" भूददव्वाणमेत्तियं कालमवाणु वलभादो ।"
अर्थ - अशुद्ध ऋजुसूत्र नय है वह चक्षु इन्द्रिय की विषयभूत व्यञ्जन पर्यायों को विषय करने वाला है । उन पर्यायों का काल जधन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से छह मास अथवा संख्यात वर्ष है, क्योकि, चक्षु इन्द्रिय से ग्राह्य व्यञ्जन पर्याये, द्रव्य की प्रधानता से रहित होती, हुई इतने काल तक अवस्थित पाई जाती है ।
स्थूल समय को बिषय करने के कारण इसका नाम स्थूल पर्यायार्थिक नम है । और वह स्थूल समय या व्यञ्जन पर्याय वर्तमान काल रूप या एक पर्याय स्वरूप ग्रहण करने मे आती है, इसलिये ऋजुसूत्र है । अत 'स्थूल ऋजुसूत्र नय' ऐसा इसका नाम सार्थक है । यह इस नय का कारण है ।
क्षणिक सूक्ष्म अर्थ पर्याय प्रमाण कोई भी सत् अप्रत्यक्ष होने के कारण व्यवहार कोटि मे नही आ सकता ।