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२ शब्द व ज्ञान सम्बन्ध
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१. पढने का प्रयोजन शाति
जानता, इसलिये सरलता से अपने गुरु की बताई हर बात को स्वीकार करता हुआ एक दिन गुरु से भी अधिक पढ जाता है । भले अब गुरु से उन्ही बातों के सबंध में तर्क करने लगे जो कि पहिले सरल वृत्ति से ग्रहण कर ली गई थी, पर पढते समय उसने तर्क बिल्कुल नहीं की थी । यदि ऐसा करता तो बिल्कुल पढ न सकता था। अतः भो भव्य ! यदि तर्क ही करना अभीष्ट है हो तो इसे उस समय के लिये रख छोड़ जबकि तू सम्पूर्ण बात पढ चुकेगा, जब कि तेरा ज्ञान अधूरा न रह जायेगा । और यदि ऐसा कदाचित हो पाया तो, अन्तरग मे साम्यता जागृत हो जाने के कारण तुझे तर्क करना रुचेगा ही नही । भले कोई गलत कह रहा हो। पर तू चुप ही रहेगा । यही है सरलता व साम्यता की पहिचान । यह अलौकिक कल्याण का मार्ग है, शान्ति का मार्ग है । किसी भी मूल्य पर अपनी शान्ति को घातने का प्रयत्न न कर । हर प्रकार इसकी रक्षा करता चल । जो कुछ भी सीख, निज शान्ति के अर्थ सीख । यदि ऐसा अभिप्राय रखकर सीखने का प्रयत्न करेगा, तो अवश्यमेव तेरे मार्ग मे आने वाली पक्षपात की बाधा दूर हो जायगी और सरल वृत्ति प्रगट हो जायेगी। आगम का एक-एक शब्द शान्ति की सिद्धि के अर्थ ही है । तेरे ज्ञान को जटिल बनाने के लिये नही, सरलता उत्पन्न करने के लिये है ।
___ हां, तो किसी नवीन वस्तु को पूरी की पूरी पढन के उपाय तीन हो
हो सकते हैं या तो वह वस्तु साक्षात रूप से देख व २. प्रत्यक्ष वे. सूघ व चखली जाय, या उस वस्तु का कोई चित्र देख परोक्ष ज्ञान लिया जायं, और या उस वस्तु से किचित मेल खाती
- कुछ अन्य-अन्य वस्तुओ के आधार पर अपने अनुमान को खेचकर, असली वस्तु के अनुरूप कुछ रूप रेखाये ज्ञान पट पर उत्पन्न करली जाये । जैसे कि स्कूल में बच्चे को पढ़ाने के लिए, या उसको वही वस्तु दिखाई जाती है या उसका चित्र या उसके अनुरूप अन्य कोई वस्तु ‘क से कबूतर' कहा और साथ मे कबूतर का चित्र