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१४. ऋजु सूत्र नयः
४. ऋजु सूत्र नय के
भेद प्रभेद व लक्षण हसने के अतिरिक्त कुछ नही कर सकते, जब कि आपको ऐसी ऐसी बात सुनने में आयेंगी, कि कौवा काला नही होता, पलाल कभी जलती नही, सफेद वस्तु ही रग कर काली नही हुई है, बालक ही बूढ़ा नही हुआ है इत्यादि।
सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर तत्व उस प्रकार का दिखाई देता है, यह तो इस नय की उत्पत्ति का कारण है, और वस्तु की सूक्ष्मता को दृष्टि में रखकर निर्विकल्पता की साधना करना इसका प्रयोजन है।
ऋजुसूत्र नय जैसा कि पहिले भलीभांति बताया जा चुका है, ४. ऋजुसूत्र नयपर्यायाथिक अर्थ नय है । पर्याय शब्द यद्यपि परिके भेद प्रभेद व वर्तनशील क्षणिक अवस्थाओ मे ही रूढ है, परन्तु
लक्षण इसका वास्तविक अर्थ अंश या वस्तु के विशेष है। वह विशेष चार प्रकार से जाने जाते है-द्रव्य के रूपरमे, क्षेत्र के रूप में, काल के रूप में और भाव के रूप मे । द्रव्यात्मक विशेष का नाम द्रव्य की व्यक्ति है, क्षेत्रात्मक विशेष को उस द्रव्य के आकार जानो, कालात्मक विशेष का नाम पर्याय प्रसिद्ध है और भावात्मक विशेष को गुण या धर्म कहते है।
कोई भी पदार्थ, वह स्थूल हो या सूक्ष्म इन चारों से समवेत होगा हो । ये चारों ही पृथक् पृथक् सामान्य व विशेष के रूप मे देख जा सकते है। समस्त जातियों व व्यक्तियों से समवेत एक अखण्ड जीवतत्व सामान्य द्रव्य है और कोई भी व्यक्तिगत एक जीव विशेष द्रव्य है । लोक प्रमाण व्यापी उस सामान्य जीवतत्व का सामान्य क्षेत्र है, तथा उस व्यक्ति का अपना वर्तमान संस्थान उस जीव विशेष द्रव्य का विशेष क्षेत्र है । जीव द्रव्य सामान्य की लोक मे त्रिकाल सत्ता सामान्य जीव तत्व का सामान्य काल है और जन्म से मरण पर्यन्त उस व्यक्तिगत जीव की स्थिति उस विशेष जीव द्रव्य का विशेष काल है ।अनेक गुणों से समवेत कोई एक अखण्ड भाव जीव द्रव्य