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१४. ऋजु सूत्र नय
२. ऋजु सून नय
सामान्य के लक्षण अर्थ--इस नय की अपेक्षा एक उपयोग की एक साथ अनेक
द्रव्यो मे प्रवृत्ति मानने मे विरोध आता है।
यदि कहा जाय कि एक साथ एक उपयोग अनेक द्रव्यों में प्रवृत्ति कर सकता है, इसमें कोई विरोध नहीं है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योकि ऐसा मानने पर इस नय की अपेक्षा वह एक उपयोग नही हो सकता है, क्योकि जो एक साथ अनेक अर्थों में रहता है, उसे एक मानने मे विरोध आता है।
___ यदि कहा जाय कि एक जीव के एक साथ अनेक उपयोग सम्भव हैं, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योकि विरुद्ध अनेक धर्मो का आधार हो जाने से उस एक जीव को जीवबहुत्व का प्रसग आता है । अर्थात परस्पर मे विरुद्ध अनेक अर्थो को विषय करने वाले अनेक उपयोग एक जीव मे एक साथ मानने से वह जीव एक नहीं रह सकता है, उसे अनेकत्व का प्रसग प्राप्त होता है ।
क्रमशः क. पा. । १ ।१७८ ॥३१५ “किमट्ठमेग चेव णाणमुप्पज्जइ,
एगसत्तिसहियएयमणत्तादो । एवं संते बहुअवग्गहस्स अभावो होदि चे, सच्च; उजुसुदेसु बहुँ अवग्गहो णास्थित्ति, एयसत्तिसहियएयमणुब्बभुगमादो । अणेयसत्ति सहियमणदव्वब्भुवगमे पुण अत्थि बहुअवग्गहो, तत्थ विरोहाभावादो।"
अर्थः-शंकाः-एक काल में एक ही ज्ञान क्यो उत्पन्न होता है ?
उत्तर:-क्योंकि एक क्षण मे एक शक्ति से युक्त एक ही मन पाया
जाता है (अगले क्षण मे उत्पन्न होने वाला मन दूसरा