________________
१. पक्षपात व एकान्त
१७
७. कोई भी मत सर्वथा झूठा नही
लौकिक विषय तो दृष्ट है, इसलिये उनके सबध मे तो तू सहज ठीक-ठीक अभिप्राय को ग्रहण कर लेता है । उलटी भाषा का भी सीधा अर्थ लगा लेता है । पर यह अध्यात्म विषय अदृष्ट है । और इसी कारण यथा योग्य रीति से सहज इसका ठीक-ठीक अभिप्राय समझना, तुझे अवश्य कठिन ही नही, असम्भवसा प्रतीत हो रहा है । अतः हम तुझको एक कुंजी प्रदान करे, जिसको लगाकर तू इस मार्ग की गूढ से गूढ व रहस्यमयी बातों का सरलता से अर्थ लगाने में सफल हो जायेगा। और यदि कुछ दिनो तक इस कुजी का प्रयोग करके अर्थ लगाने का अभ्यास करता रहा, तो एक दिन स्वयं अभ्यस्त हो जायेगा। और तव तुझे बिना इस कुजी के प्रयोग के ही सहज ही रहस्यमयी व जटिल दीखने वाली बातो का ठीक-ठीक अर्थ स्वत. समझ मे आने लगेगा। उस कुजी का नाम ही हैं अनेकान्तवाद, साम्यवाद या स्यावाद ।