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१३ सग्रह व व्यवहार नय ३३०
६. सग्रह व व्यवहार
नय समन्वय ग्रहण करता है । वास्तव में व्यवहार नय के विषय से इस अशुध्दसग्रह का विषय भिन्न है । क्योंकि व्यवहार का कार्य एक मे अनेकता उत्पन्न करना है, और अशुध्द संग्रह का विषय उन अवान्तर भेदों को पृथक पृथक ग्रहण करके प्रत्येक में एकता को ग्रहण करता है।
उदाहरण के रूप मे व्यवहार नय का कहना है कि जीव द्रव्य मनुष्य तिर्यन्चो आदि के भेद से अनेक प्रकार का है, और सग्रह नय का कहना है कि जीव द्रव्य सामान्य एक ही है । व्यवहार नय का कहना है कि पशु पक्षी आदि के भेद से तिर्यन्च अनेक प्रकार का है और सग्रह नय का कहना है कि तिर्यन्च सामान्य एक है-इत्यादि ।
३ शंका-व्यवहार नय द्रव्यपर्यायो का आश्रय करके वस्तु मे
भेद डालता है, क्योकि मनुष्य तिर्यन्च आदि द्रव्य नही बल्कि द्रव्य पर्याय है। फिर भी इसे द्रव्याथिक क्यों
कहा, पर्यायाथिक क्यों नही.? उत्तरः--इस शका का उत्तर आगम मे निम्न प्रकार दिया है।
ध ।११पृ. ८४११६ “ये तीनो हो (नगम, संग्रह और व्यवहार)
नय नित्यवादी है, क्योकि, इन तीनो ही नयो का विषय पर्याय न होने के कारण इन तीनो ही नयो के विषय मे सामान्य और विशेष काल का अभाव है।
इसका तात्पर्य यह है कि व्यवहार नय के द्वारा जिन भेदो का का ग्रहण किया जाता है वे या तो द्रव्य है या द्रव्यपर्याय । एक समय वर्ती अर्थ पर्याय के भेदो को यह ग्रहण नही करता क्योकि वह प्रत्यक्ष नही है । द्रव्य पर्याय भी यद्यपि पर्याय है पर लौकिक व्यवहार में उन्हे द्रवय रूप से ही ग्रहण किया जाता है जैसे कि जन्म