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१३.. संग्रह व व्यवहार नय
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४ व्यवहार नय सामान्य
है, अथवा द्रव्य गुण पर्यायवान है ऐसा कहना इसका उदाहरण है । । अब इसकी पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगमोक्त उध्दरण
देखिये।
१ स सि ।१।३३।५१० “सग्रहनयाक्षिप्तानामर्थानां विधिपूर्वक
मवहरणं व्यवहारः।"
अर्थ- संग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ या पदार्थों का
विधि पूर्वक व्यवहार करना या भेद करना व्यवहार । नय है।
(रा वा ।१।३३।६६)
२. आ प. १६।पृ०१२४ “सग्रहेण गृहीतार्थस्य भेदरूपतया वस्तु
___ व्यवहियत इति व्यवहार ।" (अर्थः-सग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ के भेद रूप
से, जो वस्तु मे व्यवहार करे अर्थात भेद उत्पन्न करे वह
व्यवहार नय है। ३ स० म० ।२८।३१७।१४ “संग्रहेण गोचरीकृतानामर्थाना विधि
पूर्वकमवहरणं येनाभिसंधिना क्रियते स व्यवहारः । यथा यत् सत् तद् द्रव्यं पर्यायो वेत्यादि ।" ।
(अर्थ:--सग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थो या विषयों
मे विधि पूर्वक भेद रूप व्यवहार जिस के अभिसधान द्वारा किया जाता है सो व्यवहार नय है-जैसे “जो सत् है सो द्रव्य रूप या पर्याय रूप होता है" ऐसा कहना ।)
__४:"त. सा० ॥१४६॥३८ ‘‘सग्रहेण गृहीतानामर्थाना विधिपूर्वकः ।
- व्यवहारो भवेद्यस्माद् व्यवहारनयस्तु सः ।४६।"