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________________ १३.. संग्रह व व्यवहार नय ३२३ ४ व्यवहार नय सामान्य है, अथवा द्रव्य गुण पर्यायवान है ऐसा कहना इसका उदाहरण है । । अब इसकी पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगमोक्त उध्दरण देखिये। १ स सि ।१।३३।५१० “सग्रहनयाक्षिप्तानामर्थानां विधिपूर्वक मवहरणं व्यवहारः।" अर्थ- संग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ या पदार्थों का विधि पूर्वक व्यवहार करना या भेद करना व्यवहार । नय है। (रा वा ।१।३३।६६) २. आ प. १६।पृ०१२४ “सग्रहेण गृहीतार्थस्य भेदरूपतया वस्तु ___ व्यवहियत इति व्यवहार ।" (अर्थः-सग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ के भेद रूप से, जो वस्तु मे व्यवहार करे अर्थात भेद उत्पन्न करे वह व्यवहार नय है। ३ स० म० ।२८।३१७।१४ “संग्रहेण गोचरीकृतानामर्थाना विधि पूर्वकमवहरणं येनाभिसंधिना क्रियते स व्यवहारः । यथा यत् सत् तद् द्रव्यं पर्यायो वेत्यादि ।" । (अर्थ:--सग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थो या विषयों मे विधि पूर्वक भेद रूप व्यवहार जिस के अभिसधान द्वारा किया जाता है सो व्यवहार नय है-जैसे “जो सत् है सो द्रव्य रूप या पर्याय रूप होता है" ऐसा कहना ।) __४:"त. सा० ॥१४६॥३८ ‘‘सग्रहेण गृहीतानामर्थाना विधिपूर्वकः । - व्यवहारो भवेद्यस्माद् व्यवहारनयस्तु सः ।४६।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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