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१२. नैगम नय
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५. पर्याय नैगम नय
स्थापन की गई पर्याय भी अर्थ पर्याय या गुण पर्याय ही होनी चाहिये द्रव्य पर्याय नही, क्योकि उस का ग्रहण द्रव्य के रूप मे द्रव्य नैगम के अन्तर्गत किया जा चुका है। यहां अर्थ पर्याय या गुण पर्याय से तात्पर्य किसी भी गुण की क्षणिक पर्याय है ।
यद्यपि सूक्ष्म दृष्टि प्रप्येक पर्याय ही क्षणिक होती है, परन्तु स्थूल दृष्टि से कुछ पर्याय ऐसी भी होती है जो बहुत कालपर्यन्त या सारे जीवन पर्यन्त जू की तूं देखने में आती है । जैसे ज्ञान गुण की मति ज्ञान आदि पर्याये । इस प्रकार की पर्यायों को व्यज्जन पर्याय कहते है । उपचार से इनको गुण भी कह दिया जाता है । इन के अतिरिक्त कुछ पर्याये ऐसी । भी होती है जो स्थूल दृष्टि से देखने पर भी क्षण स्थाई ही दिखाई देती है - जैसे विपय सुख या क्रोधादि भाव । ऐसी पर्यायो को अर्थ पर्याय या गुण पर्याय कहते है । इन के क्षण वर्ती पने के कारण इन्हे उपचार से भी गुण नही कहा जा सकता । इसके अतिरिक्त प्रत्येक गुण की प्रति समयवर्ती जो एक सूक्ष्म पर्याय होती है, जो छद्मस्थ ज्ञान के अगोचर है, उसे भी अर्थ पर्याय कहते है ।
वहा पहिली अर्थात स्थूल अर्थ पर्याय को अशुद्ध अर्थ पर्याय कहते है और पिछली अर्थात सूक्ष्म अर्थ पर्याय को शुद्ध अर्थ पर्याय कहते है । अत्यत मूक्ष्म होने के कारण शुद्ध अर्थ पर्याय को लक्षण रूप से ग्रहण नही किया जा सकता, क्योकि लक्षण सर्व जन परिचित ही होना चाहिये ऐसा न्याय है । अत. यहा अर्थ पर्याय नैगम के प्रकरण मे अशुद्ध पर्याय को ही लक्षण व लक्ष्य वना कर कथन किया जा रहा है ।
यद्यपि अर्थ पर्याय नैगम दो प्रकार की होती है - शुद्ध अर्थ पर्याय नैगम और अशुद्ध अर्थ पर्याय नैगम परन्तु उपरोक्त कारण से शुद्ध अर्थ पर्याय नैगम का उदाहरण भी सम्भव नही है | अतः अशुद्ध अर्थ पर्याय नैगम के उदाहरण पर से उस का भी योग्य रीति से अनुमान