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१२ नैगम नय
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५. पर्याय नैगम नय
सत् की पर्याय तथा किसी अन्य गुण की पर्याय अथवा सत् का अनित्य स्वभाव तथा किसी भी अन्य गुण या पर्याय का अनित्य स्वभाव, यह सब पृथक सत्ता रखते हैं । इस प्रकार यहा दो धर्मो मे एकता करने के कारण द्वैत को अद्वैत करना कहा है, द्रव्य नैगम वत् अद्वेत को द्वैत करना नहीं । ___मुख्य गौण व्यवस्था तो यहा भी द्रव्य नैगम वत् ही है, अर्थात जिस गुण या पर्याय को विशेषण रूप से ग्रहण किया गया है वह तो गौण कर दिया जाता है। और जिसे विशेष्य रूप से जानना अभीष्ट है उसे मुख्य किया जाता है।
____ यहा देखना यह है कि लक्षण किस नय का विषय है और लक्ष्य किस नय का । सो कोई भी अर्थ या व्यञ्जन पर्याय तो निः सदेह पर्यायाथिक नय का विषय है ही, परन्तु द्रव्य से पृथक करके विचारा गया कोई गुण भी पर्यायाथिक नय का ही विपय हैं । इस प्रकार लक्षण व लक्ष्य दोनो ही पर्यायाथिक नय के विषय है। पर्यायाथिक के विषय भूत एक गुण या पर्याय पर से पर्यायाथिक के विषयभूत अन्य गुण या पर्याय का सकल्प करना ही पर्याय पर से पर्याय का सकल्प करना है ।
. यह इस नय की स्थापना हुई। इसके उदाहरण तो आगे इस नय के भेदों के कयन मे आने वाले है। उनसे पृथक इसका कोई स्वतत्र उदाहरण नही हो सकता । अव इसकी पुष्टि व अभ्यास के लिये कुछ आगम कथित वाक्य उद्धत करता हू ।
१ क. पा. । प्र १ । पृ २४४।र ३ "ऋजु सूत्रादिनयचतुष्टयविषयं
युक्त्यवष्टभबलेन प्रतिपन पर्यायार्थिक नैगम ।"
अर्थः- ऋजुसूत्रादि चारो पर्यायार्थिकनयों के विषय को युक्तिरूप
आधार के वल से स्वीकार करने वाला पर्यायार्थिक नैगम है।