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१२ नैगम नय
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अब इस नय के कारण व प्रयोजन देखिये । ग्राह्य लक्षण शुद्ध द्रव्याथिक का विषय है इसलिये यह नय शुद्ध है । द्रव्य पर से द्रव्य का सकल्प अर्थात द्रव्यार्थिक के विषय पर से द्रव्यार्थिक के विषय का संकल्प करने के कारण द्रव्य नय है | अद्वैत सत् मे लक्षण लक्ष्य द्वैत को ग्रहण करने के कारण नैगम है । अथवा मात्र ज्ञान के आकार में ही सकल्प द्वारा द्वैत किया गया है, इसलिये भी इसे नैगम कहा गया है । इसलिये इसका 'शुद्ध द्रव्य नैगम नय' ऐसा नाम सार्थक है। यह इस नय का कारण है । तथा दृष्ट जो सत्ता या अस्तित्व रूप स्वभाव उसके आधार पर अखण्ड व अदृष्ट वस्तु का परिचय देना इसका प्रयोजन है ।
३ अशुद्ध द्रव्य नैगम नय
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द्रव्य नैगम नय
उपरोक्त शुद्ध द्रव्य नैगम नय की भाति इसके लक्षण का विस्तार भी द्रव्य नैगम सामान्य के लक्षण पर से जाना जा सकता है । अन्तर केवल इतना है कि यहा लक्षण अशुद्ध द्रव्यार्थिक का विषयभूत ही होना चाहिये या यो कहिये कि अशुद्ध द्रव्यार्थिक के विषयभूत अशुद्ध द्रव्य पर से द्रव्य सामान्य का संकल्प करना अशुद्ध द्रव्य नैगम नय का लक्षण है ।
१. श्लो. वा. ।पु ४। पृ ३९ " गुण पर्याय सकल्प करना (अशुद्ध द्रव्य
जैसे 'गुण पर्याय वाला द्रव्य है' या ज्ञानवान जीव ऐसा कहना तहा 'गुण पर्याय बाला' अथवा 'ज्ञानवान' यह कहना तो अभेद मे भेद की कल्पना है । वह अशुद्ध द्रव्याथिक या व्यवहार नय का विषय है । यह तो लक्षण है और द्रव्य समान्य लक्ष्य है । इस प्रकार यहां अशुद्ध द्रव्य पर से द्रव्य सामान्य का सकल्प किया जा रहा है । अब इसी की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देता हू |
आदि भेद डालकर वस्तु का नैगम नय है ) । "