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१२ नैगम नय
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१. नैगम नय सामान्य
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४. सग्रह व व्यवहार दोनो को विपय करने वाला नैगम
नय है।
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कर्ता कर्म आदि मे भेद करने वाला नैगम नय है ।
यह सब इस नैगम नय के लक्षण है । इसके अनेको भेद प्रभेद है, जो आगे बताये जायेगे। यहा तो नैगम सामान्य का प्रकरण है, अत इसके उपरोक्त लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम के उद्धरण देखिये:
१. लक्षण नं १ (संकल्प मात्र ग्राही)
१. रा. वा. ।१।३३।२।६५ "निगच्छन्ति तस्मिन्निति निगमनमात्र
वा निगमः निगमे कुशलो भवो नैगमः ।"
अर्थ - 'नि' उपसर्ग पूर्वक गम' धातु से 'अच' प्रत्यय
करने पर निगमन शब्द बना है । और निगम शब्द से कुशल या भव अर्थ मे 'अण्' प्रत्यय करने पर नैगम शब्द की सिद्धि हुई है । (इसका अर्थ संकल्प करना है)
२ आ प. १९।२३ "नैक गच्छतीति निगम निगमो विकल्प.
स्तत्र भवो नैगम.।"
अर्थ- जो प्रचुर रूपेण जाने सो निगम । निगम का अर्थ
विकल्प है। उसमे होने वाला ज्ञान नैगम कहलाता है। २ स सि ।१।३३।५।५०७ “अनभिनिर्वृत्तार्थसंकल्पमात्रग्राही नैगमः।
कश्चित्पुरुष परिगृ हीतपरशु गच्छन्तमवलोक्य कश्चित्पृच्छति किमर्थ , भवान्गच्छतीति । स आह प्रस्थमानेतुमिति । नासौ तदा प्रस्थपर्यायः सन्निहितः, तदर्थे -व्यापारे स