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११. शास्त्रीय नय सामान्य २२७५. सात नयो मे उत्तरोत्तर
सूक्ष्मता मे मेद होने पर भी, नगरो का नाश करते व न करते समय पुरन्द शन्द इन्द्र के अर्थ में प्रयुक्त होता है परन्तु एवभूत की अपेक्षा नगरो का नाश करते समय ही इन्द्र को पुरन्दर नाम से कहा जा सकता है। अतएव एवभूत से समभिरूढ़ नय का विपय अधिक है ।
अन्य प्रकार से भी इन सातो नयो की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता का विचार किया जा सकता है । यह निम्न प्रकारः१. 'प्रमाण ज्ञान' भी वस्तु के सामान्य व विशेषाशों को युग
पत ग्रहण करता है परन्तु मुख्य गौण के विकल्प रहित एक रसात्मक अखण्ड रूप मे, अतः इसका विषय सबसे महान है।
२. 'नैगम नय' भी वस्तु के भेदात्मक व अभेदात्मक दोनों
सामान्यो को युगपत ग्रहण करता है परन्तु मुख्य गौण के विकल्प सहित खण्डि रूप में । अतः इसका विषय प्रमाण के विषय से अल्प है । अर्थात भेद व अभेद दोनों अंशो को युगपत ग्रहण करने पर भी वह प्रमाण नही कहा जा सकता क्यों कि इसका विषय मुख्य गौण व्यवस्था सहित सविकल्प है, और प्रमाण का विषय मुख्य गौण व्यवस्था से रहित
निर्विकल्प। ३ 'संग्रह नय' नैगम के विषय में से अनेक विशेषो रूप अथका
भेदों रूप सामान्य को छोड़कर केवल उन विशेषों या भेदो मे अनुगत एक अभेदात्मक सामान्य अश को ही परिपूर्ण वस्तु रूप से स्वीकार करता है । अत. इसका विषय नैगम
से अल्प है। . . - ४. 'व्यवहार नय' नैगम के विषय मे से अभेदात्मक सामान्यांश
को छोड़कर उसको केवल भेदात्मक अशको अर्थात उस एक