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११ शास्त्रीय नय सामान्य २११
१ ज्ञान अर्थ व
शब्द नय है। अर्थ क्रिया रूप से वस्तु की जो अर्थ मे सत्ता रहती है उसे अर्थात्मक वस्तु कहते है । जैसे ज्ञान में प्रतिबिम्बित 'गाय' ज्ञानात्मक गाय है। ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ 'गाय' शब्द या मुख से बोला हुआ 'गाय' शब्द शब्दात्मक गाय है । और दूध देने रूप अर्थ क्रिया करने वाली असली'गाय' अर्थात्मक गाय है । इन तीनो मे से ज्ञानात्मक वस्तु स्वयं जानी जा सकती है परन्तु न दूसरे को दिखाई जा सकती और न किसी प्रयोग में लाई जा सकती है-जैसे ज्ञानात्मक गाय स्वय जानी जा सकती है परन्तु न किसी को दिखाई जा सकती है और न उससे दूध दुह कर पेट भरा जा सकता है शब्दात्मक वस्तु स्वय भी पढी व सुनी जा सकती है, दूसरे को भी पढाई व सुनाई जा सकती है, परतु उसे किसी प्रयोग मे नही लायी जा सकती-जैसे कि शब्दात्मक गाय या 'गाय' नाम का शब्द स्वय भी पढ़ा व सुना जा सकता, दूसरे को भी पढ़ाया व सुनाया जा सकता है परन्तु उससे दूध दूह कर पेट नही भरा जा सकता। अर्थात्मक वस्तु स्वय भी जानी व देखी जा सकती है, दूसरे को भी सुनाई व दिखाई जा सकती है और उसको प्रयोग में भी लाया जा सकता है-जैसे दूध देने वाली गाय स्वय भी जानी व देखी जा सकती है, दूसरे को भी जनाई व दिखाई जा सकती है, और उस से दूध दूह कर पेट भी भरा जा सकता है।
इस प्रकार वस्तु तीन प्रकार की है-ज्ञानात्मक, शब्दात्मक व अर्थात्मक । चौथी प्रकार की वस्तु लोक मे नही है । तीन, प्रकार की वस्तुओ का जानने वाला ज्ञान भी तीन प्रकार का होना चाहिये । ज्ञान दो प्रकार है-प्रमाण रूप और नय रूप । अखड वस्तु को जानने वाला एक रसात्मक ज्ञान प्रमाण कहलाता है और उस वस्तु के एक देश को जानने वाला अंश ज्ञान नय कहलाता है । अतः प्रमाण भी तीन प्रकार का है-ज्ञानात्मक प्रमाण-शब्दात्मक प्रमाण और अर्थात्मक प्रमाण । प्रत्यक्षज्ञान-ज्ञानात्मक प्रमाण है, आगम या द्रव्य श्रुत शब्दात्मक प्रमाण हैं, और वस्तु स्वयं अर्थात्मक प्रमाण है। नय भी