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१० मुख्य गौण व्यबस्था २०३
२ विशेषण विशेष्य
व्यवस्था वस्तु आधेय होती है । इसलिये वक्ता व श्रोता के मध्य के वचन क्रम मे सदा ही वस्तु के अङ्ग विशेष रूप से आश्रय किये जाते है । इसीलिये वस्तु के इन अंगों को विशेषण' यह नाम दिया गया है, और इन विशेषणो पर से विचार करके अपरिचित अभेद या अखण्ड वस्तु को स्पर्श किया जाता है, या स्पर्श कराने का प्रयत्न किया जाता है, इसलिये अभेद को 'विशेष कहते है। जैसे कि जो जनावे सो ज्ञान तथा जो जाना जाये सो ज्ञेय, जो दिखावे सो प्रकाश और जो दिखाया जाय सो प्रकाशय, इसी प्रकार जिसके आधार पर जनाया जाये सो विशेषण और जो जाना जाये सो विशेष ।
इस पर से यह नियम नही किया जा सकता कि त्रिकाली अखण्ड वस्तु ही सर्वत्र विशेष स्वीकारी जाये, और उसके वे सर्व भेद प्रभेद जो अध्याय न.८ मे दर्शाये गये है, और उसकी सर्व व्यञ्जन पर्याये, सर्व गुण, तथा सर्व अर्थ पर्याये सर्वत्र विशेषण रूप से ग्रहण किये जाये । जैसाकि पहिले यह सर्व भेद दर्शाते समय अध्याय न . ८ में भी दर्शा दिया गया है, और आगे सग्रह-व्यवहार नय वाले अध्याय न १२ मे भी स्पष्ट किया जायेगा, वस्तु की भेद प्रभद व्यवस्था मे, पहिला पहिला अर्थात वहा दिखाये गये चार्ट की अपेक्षा ऊपर ऊपर का भेद तो बराबर अपने से आगे नीचे वाले प्रभेदो की अपेक्षा अभेद या अगी बनता चला जाता है, और उससे आगे व नीचे के वह प्रभेद उसके अङ्ग बनते चले जाते है । यहा तक कि अन्तिम सूक्ष्म अङ्ग अर्थात सूक्ष्म अर्थ पर्याय आ जाती है जिसका कि आगे भेद होना ही सम्भव न हो सके।
जैसे कि त्रिकाली सामान्य जीव की अपेक्षा ससारी व मुक्त आदि आगे के सर्व भेद तो अङ्ग है और वह जीव सामान्य एक अङ्गी है । और संसारी जीव की अपेक्षा त्रस स्थावर तथा उनके आगे के सर्व उत्तर प्रभेद अङ्ग है और संसारी जीव एकला अङ्गी है । यहा