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का अर्थ
१० मुख्य गौण व्यवस्था १६ १. मुख्य गौण व्यवस्था श्रोता:-हां, जू जूं और और चीजे मिला मिलाकर अनुमान
करता जाता हूं तू तू स्वाद और और ही जाति का होता
जाता है। आप -सबको मिलाने पर अब कैसा स्वाद ध्यान मे आ रहा है ? श्रोता.-बिल्कूल विजाति प्रकार का कोई अनौखा सा स्वाद बन ___गया है। आपः-नमक मिर्च आदि का स्वाद याद न रखना । भूल जाना । श्रोता:-अच्छा भूल गया। आपः-अब कैसा स्वाद आता है? श्रोता:-जानता हूं पर बता नही सकता। आप:-बस यही है वह जीरे के पानी का स्वाद ।
बस अब तो श्रोता प्रसन्न हो जायेगा ओर हर्ष से भरा हुआ कह देगा कि ओह ! यही है वह जीरे का पानी ? भले ही उसे आपके जैसा प्रत्यक्ष स्वाद न आया हो पर उसके अनुरूप कुछ धुन्धला सा भान उसे अवश्य हो गया।
इसी प्रकार आत्मा एक पदार्थ है । ज्ञान-चारित्र-श्रद्धा व वेदना इसके गुण या त्रिकाली अग या विशेषण है। मति श्रुत आदि ज्ञान, राग रूप चारित्र, भौक्तिक पदार्थो मे इष्टता रूप श्रद्धा, अशान्ति की वेदना यह इन चारो गुणो की सर्व जन सामान्य के अनुभव मे आने वाली वर्तमान अर्थ पर्याय है, मनुष्यत्व वर्तमान की व्यञ्जन पर्याय है । यह दोनो पर्याय उस आत्मा के क्षणिक अंग या विशेषण है । ये सर्व विशेषण श्रोता के अपने अनुभव मे आये हुए है, जैसा कि अध्याय न'. ७ मे सिद्ध किया जा चुका है । श्रोता को इस आत्म पदार्थ का परिचय दिलाने के लिये आपको वही दृष्टान्त मे दिखाया गया क्रम अपनाना पड़ेगा।