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ह. नय की स्थापना
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५ प्रत्येक शब्द एक
नय है के नाम से कहे जाते है । भिन्न भिन्न समय पर वक्ता की दृष्टि या प्रयोजन भी अनिश्चित रूप से भिन्न भिन्न ही होता है, अतः यह दृष्टिये या वचन विकल्प या नय असख्याती हो जाती है । जिनमे से सब की सब तो जानी या बताई जानी असम्भव है, हां मुख्य मुख्य कुछ दश पाच पचास बताई जा सकती है ।
यहा इतना ध्यान में रखना आवश्यक है कि किसी भी कथन को चलाने के लिये वचन या शब्द ही हमारे पास एक माध्यम है, इसलिये किसी भाव को दर्शाने के लिये हमे उस भाव का कुछ न कुछ सज्ञा करण करना अवश्य पड़ता है, अर्थात् उस भाव का नाम अवश्य रखना पड़ता है । इसके बिना कथन चल नहीं सकता । जितने भी शब्द आज प्रचलित है वे सबके सब आगे पीछे इसी प्रकार प्रकाश मे आये है । एक बार एक शब्द का प्रयोग होने के पश्चात वह शब्द लोक मे प्रसिद्ध हो जाता है, और शब्द कोषों मे स्थान पा लेता है। अब उसका कोई न कोई अर्थ होने लगता है । और इसी प्रकार शब्द कोष मे बराबर वृद्धि होती जाती है । आवश्यकता आविष्कार की जननी है । आवश्यकता पड़ने पर यथा योग्य नये शब्द भी, उस उस समय के भावो व प्रयोजनो के प्रति सकेत देने के लिये, बनाये जाते रहते है । जैसे कि आज भारत विधान मे हिन्दी भाषा को स्थान देने के लिये, हमारी सरकार को अनेको नये शब्दो का निर्माण करना पड़ा । यह शब्द अब तो नये घड़े गये है, परन्तु आगे जाकर वे हमारे शाब्दिक संग्रह के अग बन जाने पर प्रसिध्द व पुराने हो जायेगे, हमें उनके प्रयोग का अभ्यास हो जायगा । इसी प्रकार नयो के सम्बन्ध मे जानना । जितने भी नयो के नाम आगम मे आते है, उतनी ही नय हो, ऐसा नही है। वह तो कुछ भी नही है, और भी असख्यातो हो सकती है । वे सब किसी न किसी वाच्य अभिप्राय के प्रति संकेत करने का साधन मात्र है।