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६. द्रव्य सामान्य
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द्रव्य व गो सम्बन्धी समन्वय
है । इस नियम के अनुसार गुण मे या द्रव्य मे एक समय में एक ही पर्याय हो सकी है, दो नही । फिर एक समय में त्रिकाली पर्यायो को कैसे देखा जा सकता है
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उत्तर प्रश्न ठीक है । वस्तु मे व वस्तु के ज्ञान मे कुछ अन्तर है । यह अन्तर तेरी, दृष्टि में स्पष्ट नही है, यही कारण है इस प्रश्न की जागृति का है ।
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वस्तु में पर्याय उत्पन्न होकर विनष्ट हो जाती है, फिर दिखाई नही देती, परन्तु क्या ज्ञान मे भी ऐसा होता हैं ? वहां तो वह एक पर्याय को जान लिया तो सर्वदा के लिये जान लिया । वहा वह विनष्ट पर्याय दिखनी बन्द हो जाये ऐसा नही हो सकता । क्योंकि वह वहा स्मृति का विषय बन जाती है । इसी प्रकार अनुत्पन्न पर्याय या भविष्य काल सम्बन्धी पर्याय भले ही वस्तु मे व्यक्त न हो, पर अनुमान के आधार पर ज्ञान मे वह व्यक्त है । जैसे कि आप अपनी होने वाली मृत्यु के समय की अवस्था का या बुढापे की अवस्था का पहिले ही से निर्णय किये बैठे हो ।
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आप अपने जीवन पर दृष्टि डाल कर देखे तो आपकी दृष्टि मे आप का बचपन अव्यक्त नही है, प्रत्यक्षवत् है । आज की अवस्था तो व्यक्त है ही, और आगे की वुढापे वाली अवस्था भी व्यक्त व ही है । इस प्रकार आपके ज्ञान मे वस्तु की तीनो कालो की पर्याये पंड़ी है। हीन ज्ञान में यह पर्याय कुछ कम है, ज्ञान अधिक हो जाने पर यह कुछ अधिक हो जाती है, और पूर्ण हो जाने पर वस्तु की त्रिकाली पूरी की पूरी पर्यायो को पकड़ने में समर्थ हो जायेगा । परीक्षा ज्ञान मे यह कुछ अस्पष्ट सी है, विशेषत् भविष्यत काल सम्बन्धी, पर प्रत्यक्ष ज्ञान मे यह सर्व स्पष्ट होगी चाहे भूत काल की हो या भविष्यत्
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