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६ द्रव्य सामान्य
४. वस्तु के स्वचतुष्टय
द्रव्य से पृथक् अपनी सत्ता न रखने के कारण स्वयं द्रव्य है, द्रव्य मे सर्वत्र व्यापकर रहने के कारण द्रव्य का आकार या क्षेत्र ही उसका आकार या क्षेत्र है, एक क्षण स्थायी होने के कारण क्षण मात्र उसका काल है, उस क्षण मे प्रगट हुई गुण की शक्ति का कुछ अंश ही उसका भाव है क्योकि गुण की किसी पर्याय मे शक्ति अश अधिक प्रगट रहते है और किसी मे कम, जैसे कि वालक की पर्याय मे ज्ञान गुण की शक्ति कम व्यक्त होती है और युवा अवस्था मे अधिक।
द्रव्य गुण व पर्याय का क्षेत्र काल व भाव क्योकि सर्वत्र समान नही रहता है, हीन या अधिक देखा जाता है, इसलिये इनकी हीनाधिकता को मापने के लिये किसी एक गज या यूनिट की आवश्यकता पडती है । मापने के छोटे से छोटे पैमाने को यूनिट कहते है । क्षेत्र का छोटो से छोटा भाग क्षेत्र का युनिट है और इसी प्रकार काल व भाव का भी अपना अपना छोटे से छोटे भाग उस उसका यूनिट है। यूनिट द्वारा क्षेत्रादि का परिमाण जाना जाता है, पर यूनिट का प्रमाण अन्य के द्वारा नही जाना जाता, क्योकि वह आदि मध्य अन्त की कल्पना से रहित विभागी होता है।
किसी पुद्गल स्कन्ध अर्थात दृष्ट पर्याय का विभाजन करते जाये। इस प्रकार इसका जो ऐसा अन्तिम भाग प्राप्त हो जिसका पुनः विभाजन न किया जा सके उसका नाम 'परमाणु' है। वह सब से छोटा द्रव्य है । अतः किसी स्कन्ध मे द्रव्य का परिमाण जानने के लिए परमाणु एक यूनिट है । यह परमाणु जितनी जगह घेरता है वह सब से छोटा क्षेत्र है उसे एक प्रदेश कहते है । अथवा क्षेत्र का कल्पना द्वारा विभाजन करते जाने पर जो ऐसा अन्तिम भेद प्राप्त हो जिसका पुनः विभाग न किया जा सके उसे एक 'प्रदेश' कहते है । यह क्षेत्र मापने का यनिट है। इसी प्रकार किसी काल के परिमाण को कल्पना द्वारा घटा, मिनट सकेन्ड आदि के क्रम से विभाजित करते जाने पर जो अन्तिम