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खतौली
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आत्मीय सम्बन्ध जोड़ रक्खा है उसे त्यागना चाहिये। जब तक यह नहीं होगा तब तक सर्व क्रियाएँ निःसार हैं । इसका अर्थ यह है कि जब तक अनात्मीय पदार्थोंके साथ निजत्वकी कल्पना है तब तक यह प्राणी धर्मका पात्र नहीं हो सकता । प्रवृत्तिकी निर्मलता उसीकी हो सकती है जिसका आशय पवित्र हो और आशय पवित्र उसीका हो सकता है जिसने अनात्मीय पदार्थोंमें आत्मबुद्धि त्याग दी । वही संसारके बन्धनोंसे छूट सकता है । फागुन बदी ११ को जैन कालेजमें प्रवचन था । पं० मनोहरलालजी वणका प्रवचन हुआ । अनन्तर मैंने भी कुछ कहा
आशाका त्याग करना ही सुखका मूल कारण है । जिन्होंने आशा जीत ली उन्होंने करने योग्य जो था वह कर लिया । आशाका विषय इतना प्रबल है कि कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता । सांसारिक पदार्थोंकी पूर्तिकर इस आशागर्तको आज तक कोई नहीं भर सका है । संसार में सुखी वही हो सकता है जो इन आशाओं पर विजय प्राप्त करले । अगले दिन क्वीवाले मन्दिर मे प्रवचन हुआ | मनुष्यों की संख्या अच्छी थी । १० बजे चर्याको निकले, परन्तु भीड़ बहुत होनेसे चर्याकी विधि नहीं मिली। परिणामोंमे कुछ शान्ति हुई । अशान्तिका कारण मोहकी बलवत्ता है । मोही जीव सर्वदा दुःखका पात्र होता है । शारीरिक अवस्था दुःखकी जननी नहीं किन्तु उसके होते उसमे जो आत्मीयताकी कल्पना है वही दुःखकी जननी है । शरीर पर पदार्थ है, परन्तु उसके साथ ऐसा घनिष्ठ सम्बन्ध है कि भिन्नता भासमान नहीं होती । मनमें विचार आया कि यदि यह चाहते हो - हमारे श्रेयो मार्गका विकास हो तो शीघ्र से शीघ्र इन महापुरुषोंका समागम त्यागो | आजकल जितने महापुरुष मिलते हैं उनका अभिप्राय तुम्हारे अभिप्रायसे नहीं मिलता है और इससे यह दृढ़ निश्चय करो कि प्रत्येक पदार्थ -