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प्रकाशकीय
७ श्री रामप्यारी बाई नाटन एवनिग हाउस न० ५२ २५ ,, ८ श्री पिन कपूरीदेवी गया (नन्देका)
२५ ,, इनमेंने कुछ महानुभावीका रुपया पेशगी भी या गया है। इन मोन उदार नरयोग के लिए म उनके भी अत्यन्त अाभारी हैं।
नेगे जीवन गाथा प्रथम भागके समान यह भाग भी अत्यन्त रोचक पोर आकर्षक बन गया है। इसमें तत्त्वगानकी विशेष प्रचुरता ही उन खान विगेपता है । पख्य वर्णा जोका जीवन प्रारम्भसे लेकर अब नक किन प्रकार व्यतीत हुया, उनकी सफलताकी कुजी क्या है और उनकी हम जीवन यात्रासे समाज और देश किस प्रकार लाभान्वित दुवा आदि विविध प्रश्नोका समुचित उत्तर प्रात करनेके लिए तथा अपने जीवनको कार्यशील और प्रामाणिक बनाने के लिए प्रत्येक गृहस्थको तो मेरी जीवन गाथाके दोनो भागोंका स्वाध्याय करना ही चाहिए । जो वर्तमानम त्यागी होकर त्यागी जीवन या प्रतिमा जीवन व्यतीत कर रहे हैं उन्हें भी अपने जीवनको कर्तव्यशील और मर्यादानुरूप बनानेके लिए इसके दोनों भागोंका स्वाध्याय करना चाहिए ।
दम कालमे जैन समाजके निर्माता जो भी महापुरुप हो गये हैं, या है उनमें पूज्य वणी जी प्रमुख हैं। सस्कृत विद्याके प्रचारमे तो इनका प्रमुख हाथ रहा ही है। रूढिचुस्त जनताको उसके बन्धनसे मुक्त करनेमे भी इन्होने अपूर्व योग दिया है । ये अपनी स्फूर्ति, प्रेरणा, सहृदयता, निस्पृहता और परोपकार वत्तिके कारण जन-जनके मानसमें समाये हुए हैं। हमारी कामना है कि पज्य वर्णी जी चिर काल तक हम सबको मार्ग दर्शन करते रहे।
श्रद्धावनत
फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री वंशीधर व्याकरणाचार्य ग्रन्थमाला सम्पादक और नियामक मत्री श्री गवर्णी जैन ग्र०वाराणसी