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मेरी जीवनगाथा आवश्यकता पड़ती है । सीधे पार्श्वनाथ भगवान्की टोंकपर ही गये थे इस लिये आठ बजते वजते वहाँ पहुँच गये। पार्श्वप्रभुके दर्शन कर हृदयमे अपार शान्ति उत्पन्न हुई। एकबार स्वर्गीय वाईजीके साथ गिरिराजकी यात्रा की थी तव पार्श्व प्रभुके पादमूलमें उन्होंने अपना जीवनचक्र सुनाते हुये प्रतिक्रमण कर नाना व्रत धारण किये थे। वह दृश्य सहसा आंखोंके सामने आगया और वाईजीका उज्ज्वल रूप सामने दृष्टिगत होने लगा। साथके लोगोंसे तत्त्वचर्चा करता हुआ वाहर आया । चारों ओर हरे भरे वृक्षों पर सूर्यकी सुनहली धूप पड़ रही थी। फिर भी शीतल वायुके झकोरे शरीरमे सिहरन पैदा कर रहे थे। मध्यान्हकी सामायिक वीचमे कर मधुवन श्रा गये । आहार आदिसे निवृत्त हो संतोपका अनुभव किया । ___ मनुष्य सोचता कुछ है और होता कुछ है । शीतकी प्रकोपतासे पावोंमें सूजन आगई और वातका दर्द भी अधिक बढ़ गया। इसलिए राजगृही जाना कठिन हो गया। गिरीडीहके महानुभावोंने आग्रह किया कि अभी आप गिरीडीह चलें, वहाँ हम उपचार करेंगे। अच्छा होनेपर आप राजगृही जावें। हम गिरीडीह चले गये। लोगोंने बहुत सम्मानसे ठहराया और नाना उपचार किये। स्वास्थ्यकी खराबीके समाचार जहाँ तहाँ पहुँच गये जिससे अनेक लोग गिरीडीह पहुंचे । क्षुल्लक मनोहरलालजी भी आ पहुँचे । आपके प्रवचनोंसे जनताको लाभ मिलने लगा। श्री साहु शान्तिप्रसादजी भी आये । आप प्रकृतिसे भद्र एवं उदार चेता हैं। आपने एक दिन कहा कि महाराज जी | मैं सागर विद्यालयकी जयन्तीके समय सम्मेदशिखरजीमें नहीं आ पाया था सो अब आजा कीजिये । मैंने कहा कि मैं क्या आक्षा करूँ ? उस प्रान्तमें वह विद्यालय जैन समाजके उत्थानमे बहुत भारी काम कर रहा है। बना रहे यही हमारी भावना है । समीपमें बैठे कुछ लोगोंने कह दिया कि वहाँ