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________________ ४७४ मेरी जीवन गाथा महाराज जो कहे सो आप लोग मानों इसमे मुझे आपत्ति नहीं। आप आगमके ज्ञाता हैं सो आपको बतलावेंगे कि धर्म कौन धारण कर सकता है ? श्री समन्तभद्र स्वामीने सम्यग्दर्शन, सम्यन्जान और सम्यक्चारित्रको धर्म कहा है। इनके धारक कौन हो सकते हैं और धर्म धारण करनेके बाद भी धारण करनेवाले जीवोंमें कुछ विशेषता होती है या नहीं ? मेरा तो विश्वास है कि जैनागममें सन्यग्दर्शनके धारण करनेकी प्रत्येक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकको छूट है । मनुष्यकी वात तो दूर रहो तिर्यञ्चके लिए भी इसका अधिकार है। जब अनन्त संसारसे पार करनेवाला धर्म उसके हात लग गया तव भी वह पापी बना रहा यह वात जैनागममें मेरे देखनेमें नहीं आई। उन्हे आप मन्दिर न आने दो क्योंकि मन्दिर आपके हैं परन्तु सम्यग्दर्शनरूप ज्योतिके प्रकट होनेपर भी उनमे पापल्प अन्वतार विद्यमान रहता है यह वात बुद्धिमें नहीं आती। अनन्तर वातावरण शान्त होगया जिससे त्ययात्रा आदि काय शान्तिसे सम्पन्न हुए। हम सायंकाल मधुवनसे ईमरी प्रागय । मेला भी यथाक्रमसे विघट गया । प्राचार्य नमिसागरजी महाराजका समाधिमरण श्री आचार्य नमिसागरजी महाराज महातपस्वी । क्या आपका हमपर अधिक स्नेह था। जय देवली तयायाम आपने चातुर्मास हुए थे तब आप वरावर हमारे नि भारद भजते रहते थे। हम ईसरी में थे, भारती भागीदा सनाधिमरण वर्णी गणेसप्रसादके सानिध्य में होनxmitr.
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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