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स्यावाद विद्यालयका स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ४७१ बनी हुई है। उसीमें श्री भगवान सुपार्श्वनाथका सुन्दर मन्दिर है। ५० वर्षसे जैन समाजमे संस्कृत विद्याको प्रचार इस विद्यालयसे हो रहा है। सक्ड़ों विद्वान् इस विद्यालयमे पढ़कर तैयार हुए हैं। वनारसका स्थान संस्कृत विद्याका प्रचार केन्द्र है। यहाँ हिन्दूधर्मावलम्बियोंके द्वारा चलनेवाले संस्कृतके सैकड़ों विद्यालय हैं, अनेकों छोटी मोटी पाठशालाएँ, सरकारी कालेज हैं तथा मालवीयजी द्वारा उद्घाटित हिन्दू यूनिवरसिटी है। ऐसे केन्द्र स्थानमे यह स्याद्वाद विद्यालय अपना बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। पं० कैलाशचन्द्रजी इसके प्रधानाध्यापक हैं। यथार्थमे आप विद्यालयके प्राण हैं । आपके द्वारा ही वह व्यवस्थितरूपसे चला आ रहा है।
विद्यालयके अधिकारियोंका यह निश्चय हुआ कि ५० वर्ष हो जानेके कारण इस विद्यालयका स्वर्ण जयन्ती महोत्सव सम्पन्न कराया जाय । मेरा बनारस पहुँचना संभव नहीं था इसलिये उत्सव का आयोजन मधुवनमे रक्खा गया। मेरा कहना था कि उत्सव विद्यालयके स्थान पर ही शोभा देगा परन्तु सुननेवाला कौन था । उत्सवके आयोजकोका भाव यह था कि श्री सम्मेदशिखरजी जैसे परम पवित्र सिद्ध क्षेत्रपर मेरा सन्निधान रहते हुए जनता अनायास आ जायगी। उत्सवके अध्यक्ष श्री साहु शान्तिप्रसादजी कलकत्ता थे। आपने सपरिवार पधारकर उत्सवको अच्छी तरह सम्पन्न कराया। कलकत्तासे श्री सेठ गजराजजी, श्री बाबू छोटेलालजी तथा उनके भाई श्री नन्दलालजी आदि अनेक महानुभाव पधारे । हजारीबाग, कोडरमा, राँची, गिरीडीह आदिसे अनेक व्यक्ति सपरिवार आये । अन्य जनता भी इतनी अधिक आई कि मधुवनकी तेरापन्थी, बीसपन्थी तथा श्वेताम्बर कोठीकी सब धर्मशालाएँ ठसाठस भर गयीं । ऊपरसे डेरा-तम्बुओंका प्रबन्ध करना पड़ा।
माघ वदी १४ संवत् २०१२ को श्री ऋषभ निर्वाण दिवसका