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विचार प्रवाह
'परिग्रहका अर्जन करना ही संसारका मूल कारण है । अनादि परिग्रहके चक्रमे है, इससे पीछा छूटे तो आत्मदृष्टि आवे अथवा जव आत्मदृष्टि आवे तव परिग्रहसे पीछा छूटे ।'
'जिसने रागादि भावोंपर विजय प्राप्त करली वही मनुष्यताका है ।'
पात्र
‘चित्तको अधिक मत भ्रमाओ, चित्तकी कलुषता ही दुःखका मूल कारण है और कलुषताका मूल कारण परमे निजत्व बुद्धि है । '
'कड़वी तूंवड़ी किसी कामकी नहीं फिर भी उसके द्वारा नदी पार की जा सकती है इसी प्रकार मनुष्यका शरीर किसी कामका नहीं फिर भी उससे संसार सागर पार किया जा सकता है ।'
'अवोध बालक एक पैसाका खिलौना टूटने पर रो उठता है पर घरमे आग लगनेपर नहीं । इससे यही तो सिद्ध होता है कि वालक खिलौनाको अपना मानता है और घरको बापका ।'
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'संसारमे नाना मनुष्यों के व्यवहार देख लक्ष्य स्थिर करने का प्रयास मत करो किन्तु अपनी शक्ति देख आत्मीय लक्ष्य स्थिर करो ।'
'जनताकी प्रशंसाके लोभी मत बनो । प्रशंसा : चाहना ही अज्ञानता द्योतक है ।'
'अन्तरङ्ग सामर्थ्य के प्रभावसे ही आत्मा कल्याणका पात्र होता है | कल्याण कहीं अन्यत्र नहीं और न अन्य उसका उत्पादक है । जब तुम स्वयं विपरीत भावके कर्ता बनते हो तब स्वयं स्वभाव के घातक हो जाते हो ।'
'शान्तिका मूल रागादिभावोंमे उदासीनता है । रागादिभावोंमें न तो मित्रता करो और न शत्रुता । यह भाव स्वाभाविक नहीं ।' 'विश्वविद्या पाण्डित्य हो उत्तम है परन्तु जिनको आत्मपरिचय हो गया उनके समक्ष उस ज्ञानका कोई महत्त्व नहीं ।'