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विचार प्रवाह
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अनन्त सुखका उपभोक्ता हो जाता है। देह न सुखका कारण है और न दुःखका।'
'रागादिकका मूल कारण मोह है अतः सबसे प्रथम इसीका त्याग होना चाहिये। जव पर पदार्थोंमे त्यागकी कल्पना मिट जावेगी तव अनायास रागद्वेष प्रलयावस्थाको प्राप्त हो जावेंगे".." इस कथासे कार्यसिद्धि नहीं होती। भोजनकथासे भोजन नहीं वन जाता। भोजनकी प्रक्रियासे भोजन बनेगा तथा भोजन बननेसे तृप्ति नहीं होगी किन्तु भोजन खानेसे तृप्ति होगी।'
'संग सर्वथा अच्छा नहीं। अन्तरगसे हम स्वयं निर्मल नहीं अतः अपनेको दोषी न समझ अन्यको दोषी समझते हैं।'
'धर्मका सम्बन्ध शारीरिक कष्टसे नहीं होता। धर्मका सम्बन्ध आत्मासे है । जब सब उपद्रवोंकी समाप्ति हो जाती है तब धर्मका उदय होता है।' ___'दूसरेकी नहीं किन्तु अपनी ही तारतम्यावस्थाको देखकर विरक्त होना चाहिये। परमार्थसे तत्त्वज्ञान बिना विरक्तता होना अति दुर्लभ है।' ___ 'जिन्हे आत्मकल्याण करनेकी इच्छा है वे तत्त्वज्ञानकी वृद्धि की चेष्टा करते हैं। जिनकी उस ओर रुचि नहीं वे अपनेको तत्त्वज्ञानके सम्पादनमे क्यों लगावेंगे ?
'पर द्रव्य मेरा स्व नहीं, मैं उसका स्वामी नहीं, परद्रव्य ही पर द्रव्यका स्व है और वही उसका स्वामी है । यही कारण है कि ज्ञानी पर द्रव्यको ग्रहण नहीं करता।'
'जिन्हें संसार तत्त्वसे पृथक् होनेकी अभिलाषा है उन्हें हृदयकी दुर्बलताको समूल नष्ट कर देना चाहिये ।। _ 'अनादिकालसे इस जीवके पर पदार्थोंका सम्बन्ध हो रहा है, आकाशवत् एकाकी नहीं रहा । यद्यपि पर सम्बन्धसे इसका